Smile please: समझिए ‘मोह’ और प्रेम में अंतर
punjabkesari.in Monday, Apr 17, 2023 - 09:50 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
love and infatuation: हम जिसे भी अपना मानने लगते हैं, उससे हमें न चाहते भी लगाव या मोह हो ही जाता है। जो धीरे-धीरे उस हद तक जा पहुंचता है कि एक ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है जब हम न उसे छोड़ना चाहते हैं व न उससे छूटना चाहते हैं। परमात्मा ने हमें सभी आत्माओं के साथ नि:स्वार्थ प्रेम करना सिखाया किन्तु अपनी अज्ञानतावश तथा देह के मिथ्या अभिमान के कारण हमने जबसे आत्मा को भूलकर देह एवं देह से मिलने वाले सुख की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करना शुरू किया, तब से हमारी अधोगति शुरू हो गई।
हम में से ज्यादातर लोग प्रेम और मोह को एक समान ही मानते हैं, जबकि इन दोनों में जमीन-आसमान का अन्तर है। देखा जाए तो व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के प्रति इतनी अधिक आसक्ति होना कि उन्हें पाने अथवा कब्जे में रखने के लिए हम कुछ भी करने को उतारू हो जाएं, तो वह स्पष्ट रूप से मोह है।
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इसी प्रकार जब हम व्यक्तिगत तौर पर किसी से आकर्षित होकर उनसे इस कदर जुड़ जाते हैं कि उनसे बिछड़ने की बात तक सोचने से हमें कष्ट होने लगता है तो यह मोह की स्थिति है, क्योंकि हमारा मोह सदैव यह चाहता है कि हमारी प्रिय वस्तु या व्यक्ति का साथ हमसे छूटने न पाए।
चाहे इसके लिए अपना अथवा उस प्रिय व्यक्ति का कितना ही अहित क्यों न होता हो परन्तु यह मोह की मोटी बेड़ी हमें आनंद का अनुभव ही कराती है। प्रेम देने के लिए किया जाता है लेने के लिए नहीं, और देते रहने में तो कोई बाधा ही नहीं परन्तु समस्या तब शुरू होती है, जब हमारे मन में लेने की भावना उत्पन्न होती है और जब वह चाह पूर्ण नहीं होती, तब हमारा प्रेम नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने कहा है कि ‘जहां नि:स्वार्थ प्रेम है, वहां शान्ति-स्थिरता तथा प्रसन्नता है’।
मनुष्य जीवन के सुन्दरतम रूप की यदि कुछ अभिव्यक्ति हो सकती है तो वह प्रेम में ही है और इसीलिए कहा गया है कि यदि मनुष्य के जीवन से प्रेम को निकाल दिया जाए तो मनुष्य जीवन शुष्क, नीरस, सदा अतृप्त व अशान्त बनकर रह जाएगा।
यदि हम अपना उद्धार चाहते हैं, तो हमें सभी प्रकार की इच्छा-कामनाओं का त्याग कर सबसे नि:स्वार्थ प्रेम करना सीखना होगा, अन्यथा हम मोह रूपी दलदल से कभी बाहर निकल नहीं पाएंगे।