Shri Shankari Devi Temple Shakti Peeth: शांति का स्वर्ग है शंकरी शक्तिपीठ, रावण ने की थी स्थापना

punjabkesari.in Monday, Nov 18, 2024 - 09:46 AM (IST)

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Shaktipeeth Shri Shankari Devi Temple: हिंदू धर्म के अनुसार शक्तिपीठ, यानी वह पवित्र जगह, जहां पर देवी के 51 अंगों के टुकड़े गिरे थे। ये शक्तिपीठ भारत के अलावा बंगलादेश, पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका और नेपाल में फैले हुए हैं। श्रीलंका में एक शक्तिपीठ स्थित है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसकी स्थापना रावण ने की थी। श्रीलंका का शंकरी देवी मंदिर, राजधानी कोलम्बो से 250 किलोमीटर दूर त्रिंकोमाली नामक जगह में एक पहाड़ पर स्थित है।

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त्रिंकोमाली आने वाले लोग इसे ‘शांति का स्वर्ग’ भी कहते हैं। चैत्र और कार्तिक माह की नवरात्रि पर यहां कई तरह के विशेष आयोजन होते हैं। इन आयोजनों में भारत खासकर तमिलनाडु से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। नवरात्रि में यहां पहुंचने वालों की संख्या रोजाना 500 से 1000 के बीच है, लेकिन अष्टमी और नवमी पर भीड़ बढ़ जाती है।

भगवान शिव का मंदिर भी
कहते हैं कि यहां माता सती के शरीर का ‘उसंधि’ यानी पेट और जांघ के बीच का हिस्सा गिरा था, इसलिए इस मंदिर को शक्तिपीठ माना गया। कुछ ग्रंथों में यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने की बातें लिखी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी। यहां भगवान शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का महत्व शिव और शक्ति, दोनों की पूजा में है।

आक्रमणकारियों ने कर दिया था ध्वस्त
इस जगह का जिक्र आदि शंकराचार्य द्वारा निश्चित 18 महा-शक्तिपीठों में भी किया गया है। इस मंदिर पर कई बार हमले हुए, जिनसे मंदिर का स्वरूप बदलता रहा। दरअसल, इस भव्य मंदिर को 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया था, जिसके बाद इसके एकमात्र स्तंभ के अलावा यहां कुछ भी नहीं था। स्थानीय लोगों के अनुसार, दक्षिण भारत के तमिल चोल राजा कुलाकोट्टन ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, तो 1952 में श्रीलंका में रहने वाले तमिल हिंदुओं ने इसे वर्तमान स्वरूप दिया। आदिशक्ति यहां शंकरी के रूप में स्थित हैं जो शिव की अर्धांगिनी हैं। खड़ी मुद्रा में स्थित इस प्रतिमा के 4 हाथ हैं। उनके चरणों के समीप ताम्बे का दो आयामी श्री चक्र रखा हुआ है। वहीं उनकी प्रतिमा के समक्ष तीन आयामी श्री चक्र खड़ा है।

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देवी के साथ है शिव जी का मंदिर
पंच ईश्वरम् अर्थात 5 प्रमुख शिव मंदिरों में से एक कोनेश्वरम मंदिर भी निकट ही स्थित है। थिरुकोनेश्वरम के नाम से भी जाना जाता यह मंदिर त्रिंकोमाली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह कम से कम रामायण के युग से अस्तित्व में है क्योंकि रावण एवं उसके इस मंदिर से सम्बन्ध की कई कथाएं सुनी गई हैं।

उन कथाओं के अनुसार, एक समय पार्वती जी को एक सामान्य स्त्री के समान एक गृह में निवास करने की इच्छा उत्पन्न हुई। भवन निर्माण के लिए उन्होंने इसी स्थान को चुना था। नवीन गृह में प्रवेश करने से पूर्व वास्तु पूजा करने के लिए पार्वती ने रावण को आमंत्रित किया, जो भव्य ईमारत को देख मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने देवी पार्वती से अनुष्ठान की दक्षिणा स्वरूप इसी भवन की मांग कर दी। इच्छा पूर्ण होने पर उसे अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने घोर तपस्या कर देवी से क्षमा मांगी तथा उनसे अनुनय किया कि वह यह स्थान छोड़कर न जाएं। उसका अनुग्रह स्वीकार करते हुए पार्वती शंकरी देवी के रूप में यहीं स्थिर हो गईं। भगवान शिव उनके संग यहां कोनेश्वर अर्थात पर्वतों के देव के रूप में निवास करते हैं। कुछ लोग थिरुकोनेश्वर का अर्थ ‘त्रिकोण + ईश्वर’ अर्थात ‘तीन पर्वतों के ईश्वर’ भी मानते हैं।

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दक्षिण कैलाश
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, रावण कैलाश पर्वत का एक टुकड़ा ले आया था, जिसके ऊपर त्रिंकोमाली बसा हुआ है। वास्तव में कोनेश्वर मंदिर उसी देशांतर पर स्थित है जिस पर कैलाश पर्वत स्थित है, इसीलिए इसे दक्षिण कैलाश भी कहा जाता है। स्कन्द पुराण के दक्षिण कैलाश महात्म्य में भी इसका उल्लेख मिलता है।

इस मंदिर को सहस्त्र स्तंभों का मंदिर भी कहा जाता है। इसके चारों ओर कई छोटे मंदिर हैं। इस क्षेत्र के कई प्रमुख मंदिरों के समान यह मंदिर भी पुर्तगाली सेना द्वारा नष्ट किया गया था। एक समय जहां मंदिर का प्रांगण स्थित था, आज वहां फ्रेडरिक का दुर्ग स्थित है। इन्हें देख अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी समय यह एक अतिविशाल मंदिर संकुल था। जान बचाकर भागते पुजारियों ने कुछ मूर्तियों को धरती में गाड़कर छुपा दिया था। लोग इनमें से कुछ प्रतिमाओं को ढूंढ निकालने में सफल हुए, जो अब मंदिर संकुल का भाग हैं।

वसंत मंडप में आप इसी प्रकार ढूंढी हुई पीतल की कुछ प्रतिमाएं देख सकते हैं। एक अन्य छोटे मंदिर में आपको काले पत्थर से बनी लक्ष्मी एवं नारायण की बड़ी प्रतिमाएं दृष्टिगोचर होंगी। मंदिर के एक आले पर एक प्राचीन नंदी स्थापित था। यहां से कुछ दूरी पर समुद्र किनारे रावण की एक सुंदर प्रतिमा दिखाई देती है जबकि रावण रसातल नामक स्थान भी दर्शनीय है। रावण रसातल अथवा वेट्टा का अर्थ है स्वामी चट्टान के बीच का कटाव। यह वही चट्टान है जिस पर कोनेश्वर मंदिर स्थित है। कहते हैं कि रावण ने अपनी तलवार से इस चट्टान को काटा था।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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