Navratri 2020: दुर्गा सप्तशती के ये 6 शक्तिशाली मंत्र जपने से दूर होगी हर विपत्ति
punjabkesari.in Friday, Oct 09, 2020 - 06:53 PM (IST)
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नवरात्रि में देवी दुर्गा की विभिन्न प्रकार से पूजा की जाती है। इस दौरान धार्मिक शास्त्रों में बताए गए इनके स्तोत्र के अलावा बीज मंत्रों का जप किया जाना बहुत लाभकारी होता है। इसके अलावा सबसे अधिक शुभकारी होता है दुर्गा सप्तशती का पाठ। कहा जाता है नवरात्रों में देवी मां के मंदिर में जाकर इसका संपूर्ण पाठ करना सबसे अधिक शुभकारी माना जाता है। बताया जाता है इसमें यानि दुर्गा सप्तशती में दैत्यों के संहार के शौर्य की गाथा से अलावा कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं।
मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्मा जी ने मनुष्यों के रक्षार्थ परमगोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताया है, जो देवी की नौ प्रतिमा स्वरूप हैं। इन्हें ही धार्मिक शास्त्रों में नव दुर्गा कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विधि वत देवी के इन नौ रूपों की आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से लेकर महानवमी तक की जाती है। सप्तशती श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। जो देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। ज्योतिषी बताते हैं कि सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्रोत एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है।
यहां जानिए इनके कुछ खास मंत्र-
* बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए-
सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥
*सर्वकल्याणकारी मंत्र-
सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके ।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
*आरोग्य एवं सौभाग्य-
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥
*विपत्ति नाश के लिए-
शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे।
सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥
*आरोग्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, संपदा एवं शत्रु भय मुक्ति-
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥
*विघ्नहरण मंत्र-
सर्वबाधा प्रशमनं त्रेलोक्यसयाखिलेशवरी।
एवमेय त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्॥
ध्यान रहे नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के बाद संकल्प लेकर प्रातः स्नान करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से गंध, पुष्प, धूप दीपक नैवेद्य निवेदित करके, पूजा करने साथ ही साथ ध्यान रखें कि पूजा के दौरान आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो।