इन 5 ग्रहों की अंतर्दशाओं में मालामाल कर देते हैं शनि
punjabkesari.in Saturday, Mar 20, 2021 - 01:43 PM (IST)

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हमारे ज्योतिष में और नवग्रहों में शनि देव को एक प्रमुख स्थान हासिल है । इन्हें न्याय का देवता और कर्म का कारक माना गया है। ऐसा माना चाहता है कि शनि देव जिस पर प्रसन्न हो जाए, उसे रंक से राजा बना देते हैं और जिन पर उनकी क्रूर दृष्टि पड़ती है, उस व्यक्ति की मुसीबतें बढ़ जाती हैं। ऐसा भी माना जाता है कि हमारे इसी जीवन में शनि हमारे कर्मों के मुताबिक हमें फल देते हैं। वैदिक ज्योतिष में शनि को सबसे मंद गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है और यह एक राशि में अढाई साल तक रहते हैं। शनि की महादशा कुंडली में 19 साल तक चलती है। शनि की महादशा या शनि की साढ़ेसाती आने पर अक्सर लोग परेशान हो जाते हैं कि ना जाने अब शनिदेव की इस दशा में उन्हें क्या-क्या भोगना पड़ेगा। शनि की महादशा बहुत ही प्रभावी मानी जाती है और इसका जातक पर शुभ और अशुभ दोनों तरह का प्रभाव पड़ता है।
शनि अपनी साढ़ेसाती और महादशा के दौरान भी शुभ फल प्रदान करते हैं। जब 19 साल के लिए शनि की महादशा आती है तो इस महादशा में बारी-बारी नौ ग्रहों की अंतर्दशाएं भी आती हैं। इन अंतर्दशाओं में पांच ग्रहों की अंतर्दशा काफी शुभ प्रभाव लेकर आती है और व्यक्ति की जिंदगी में भी कई सकारात्मक बदलाव लाती है। शनि की महादशा में क्रमवार आने वाली सभी 9 ग्रहों की अंतर्दशाओं के फलों का जिक्र करूंगा। शनि की महादशा में सबसे पहले 3 साल के लिए शनि की अंतर्दशा आती है और यह अंतर्दशा काफी शुभ फल प्रदान करती है। इस दौर में जमीन से जुड़े मामलों में भी लाभ मिलता है। यह अवधि जीवनसाथी और संतान संबंधी मामलों के लिए भी ठीक है। आपको समाज में भी सम्मान मिलता है। वहीं यदि शनि का प्रभाव नकारात्मक है तो यह अवधि नौकरी और व्यापार में आपके लिए काफी कष्टदायी हो जाती है। परिवार और भाई-बहनों के साथ आपके संबंधों में परेशानी आने लगती है और आप तनाव व अन्य मानसिक रोगों से घिर सकते हैं।
बुध की अंतर्दशा-
शनि की महादशा में शनि की अंतर्दशा के बाद फिर ज्योतिष मेंं ग्रहों का राजकुमार कहे जाने वाले बुध ग्रह की अंतर्दशा आती है। बुध की अंतर्दशा दो वर्ष आठ महीने एवं नौ दिन की होती है। इस अवधि में करियर और आर्थिक दृष्टि से शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। बुध के अंतर्दशा में होने से यह काफी हद तक शनि के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है। ऐसे वक्त में जातक समाज में एक बेहतरीन छवि स्थापित करता है और सुख सुविधाएं भी प्राप्त करता है। करियर और व्यापार में भी बुध की वजह से सफलताएं मिलती हैं और व्यक्ति की इस वक्त दान पुण्य में रुचि बढ़ जाती है।
केतु की अंतर्दशा-
शनि की महादशा में केतु की अंतर्दशा एक वर्ष एक महीने और 9 दिन की होती है। ज्योतिष में केतु को मोक्ष का कारक भी माना जाता है। शनि के साथ केतु के संयोग से जातकों को लाभ की प्राप्ति होती है। इस अवधि में जातक को विदेश जाने का मौका भी मिल सकता है तो वहीं आय में भी वृद्धि होने की संभावना रहती है। भक्ति भाव में मन लगने लगता है। वहीं अगर केतु नकारात्मक भाव में होते हैं तो जातक अंदर से कमजोर पड़ने लगता है और कई बीमारियों से घिरने लगता है। मन में शांति और संतोष की कमी आने लगती है और मन में नेगेटिव विचार आने लगते हैं ।
शुक्र की अंतर्दशा-
शुक्र ग्रह को हमारे जीवन में भौतिक सुखों, ऐश्वर्या, प्रेम व विलासिता का कारक माना जाता है। हमें प्रेम रस से लेकर जीवन के तमाम रस प्रदान करते हैं। शनि की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा तीन वर्ष दो महीने की होती है। शनि की महादशा में शुक्र जब अंतर्दशा में होते हैं तो व्यक्ति का जीवन फिर से पटरी पर आने लगता है और बिगड़ी हुई चीजें सुधरने लगती हैं। कुल मिलाकर यह संयोग जातक के लिए शुभ फल देने वाला माना जाता है। इस वक्त में जातकों का वैवाहिक जीवन भी सुखद रहता है और जिन लोगों की शादी नहीं हुई होती है उनके विवाह के संयोग बनने लग जाते हैं। करियर भी बुलंदियों को छूने लगता है।
सूर्य की अंतर्दशा-
ज्योतिष में सूर्य को पिता व आत्मा का दर्जा दिया गया है। सूर्या हमारे जीवन में पॉजिटिव एनर्जी लाते हैं। शनि की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा 11 महीने एवं 12 दिन की होती है। चूंकि शनि और सूर्य को एक-दूसरे का परम शत्रु माना जाता है इसलिए शनि की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा अशुभ फल ही प्रदान करती है। पिता और पुत्र होने के बाद भी शनि और सूर्य एक-दूसरे के दुश्मन कहलाते हैं। इसके प्रभाव से पिता के साथ संबंधों में तल्खी आ सकती है। पारिवारिक समसस्याएं उत्पन्न होती हैं और जातक परेशान रहते हैं। स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे बुखार, सिर दर्द और दिल से जुड़ी समस्याएं भी इस अवधि के दौरान परेशान करती हैं।
चंद्रमा की अंतर्दशा-
ज्योतिष में चंद्रमा को हमारे मन का कारक माना गया है। इन्हें माता का दर्जा भी दिया गया है। चंद्रमा हमारी भावनाओं का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। शनि की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा एक वर्ष सात महीने की होती है। इस संयोग को जातकों के लिए अशुभ फल देने वाला माना जाता है। इस अवधि में जातक को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक परेशान करती हैं और वैवाहिक जीवन में भी तनाव रहता है। शारीरिक दुर्बलता के चलते दांपत्य सुख की प्राप्ति नहीं होती है। रिश्तेदारों के साथ संबंध प्रभावित होते हैं और दुश्मनों की संख्या बढ़ जाती है। इतना ही नहीं धन के मामले में भी जातकों को उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है।
मंगल की अंतर्दशा-
मंगल को हमारे ज्योतिष में सेनापति का दर्जा दिया गया है और इसे एक आक्रामक और क्रूर ग्रह भी माना गया है। शनि की महादशा में मंगल की अंतर्दशा एक वर्ष एक महीने एवं नौ दिन की होती है। जब शनि की महादशा में मंगल की अंतर्दशा आती है तो कई बार जातक के जीवन में मुश्किलें आती हैं। जातकों के स्वभाव में भी आक्रामकता बढ़ जाती है और गुस्सा अधिक आने लगता है। यह दशा जीवनसाथी के साथ टकराव और अलगाव का कारण बनता है। कुछ त्वचा संबंधी एलर्जी भी जातक के लिए बनी रहती है। इस दशा में जातकों को दुश्मनों से बेहद सावधान रहने की जरूरत होती है। करियर के मामले में भी कुछ गिरावट आ सकती है।
राहु की अंतर्दशा
ज्योतिष में राहु को एक पाप ग्रह और एक मायावी ग्रह माना गया है। इन्हें शैडो ग्रह भी कहा गया है क्योंकि यह सौर मंडल में दिखाई नहीं देते। लेकिन एक ग्रह के रूप में हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। शनि की महादश में राहु की अंतर्दशा दो वर्ष दस महीने एवं छः दिन की होती है। इस दौरान जातक के जीवन में कड़े संघर्ष होते हैं और कड़ी मेहनत के बाद भी जातकों को सफलता नहीं प्राप्त होती है। मानसिक कष्ट के साथ तनाव भी रहता है और जीवन में परेशानियां आती रहती हैं। आर्थिक रूप से ऐसे लोग परेशान रहते हैं। कोई भी प्रयास सार्थक नहीं रहता।
गुरु की अंतर्दशा-
बृहस्पति ग्रह को नवग्रहों में देव गुरु का दर्जा हासिल है। बृहस्पति हमारे जीवन में उन्नति की राह खोलते हैं । इन्हें ज्ञान, कर्म , धन , पुत्र और विवाह का कारक माना जाता है। इन्हें अध्यात्म का कारक माना जाता है और इन्हें दार्शनिक का दर्जा भी दिया गया है । यह ज्ञान के दाता है। शनि की महादशा में गुरु की अंतर्दशा दो वर्ष 6 महीने एवं 12 दिन की होती है। बृहस्पति ग्रह अपनी दशा में शुभ फल प्रदान करने वाला होता है। इस दशा के दौरान व्यक्ति की ज्ञान और अध्यात्म में रूचि बढ़ जाती है और वह अपने कैरियर में भी नई ऊंचाइयां छूते है। हर काम में सफलता प्राप्त होती है। पारिवारिक जीवन में खुशियां भी लौट आती हैं। धर्म-कर्म में रुचि बढ़ जाती है। व्यक्ति तीर्थ स्थलों की यात्रा भी करता है और घर में मांगलिक कार्य भी संपन्न होते हैं।