संकष्टी चतुर्थी: इस लगड़े भक्त ने किया था अपने कठिन तप से भगवाव गणेश को खुश

punjabkesari.in Friday, Nov 15, 2019 - 10:24 AM (IST)

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देवों के देव महादेव के पुत्र श्री गणेश को हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देवता का दर्जा प्राप्त है। जिस कारण किसी भी तरह के धार्मिक कार्य व अनुष्ठान में सबसे पहले इनका ही आवाह्वन किया जाता है। माना जाता है जो भी जातक इनकी सच्चे मन से पूजा करता है उन्हें बल-बुद्धि के साथ-साथ सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है। यूं तो इनकी पूजा किसी भी दिन की जा सकती है परंतु बुधवार का दिन इनकी अर्चना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके अलावा गणेश चतुर्थी पर इनकी विधि वत पूजा करने से दोगुना फल प्राप्त होता है। आज यानि 15 नवंबर मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से शाम 07:45 मिनट पर खत्म होते ही 07:46 मिनट पर चतुर्थी तिथि का प्रारंभ हो जाएगी जो अगले दिन यानि कल 16 नवंबर को 07:15 मिनट समाप्त होगी। जिस दौरान गणाधिव संकष्टी चतुर्थी का व्रत मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार संकष्टी के दिन चन्द्रोदय ठीक 20:14 पर होगा।
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यहां जानें संकष्टी गणेश चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के समीप बैठी हुई थीं। अचानक से उन्हें चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उस समय वहां भगवान शिव-पार्वती के अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला कर सके। ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी और खेल आरंभ किया। इस दौरान माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। जिस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं। क्रोध के आवेश में आकर उन्होंने बालक को लंगड़ा बना दिया।
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बालक ने उनसे अपने अपराध की क्षमा प्रार्थना की। परंतु देवी पार्वती ने कहा कि अब मेरा श्राप वापस नहीं लिया जा सकता, पर एक उपाय है। संकष्टी के दिन यहां पर कुछ कन्याएं पूजन के लिए आती हैं, तुम उनसे उनके द्वारा किए जाने वाले व्रत व पूजन की विधि पूछना। और जैसे वो बताए तुम भी वैसे ही करना। देवी पार्वती के कहे अनुसार उस बालक ने वैसा ही किया। जिसके शुभ प्रभाव से व उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उसके समस्त संकटों को हर लिया। मान्यता है कि इसके बाद से ही इस व्रत को करने की परंपरा शुरु हुई।
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Jyoti

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