संत कबीर जयंती आज: शिक्षाओं पर डालें नजर, मन की शांति के साथ होगी ईश्वर प्राप्ति

punjabkesari.in Friday, Jun 09, 2017 - 09:29 AM (IST)

संत कबीर मानव धर्म के सच्चे उपासक थे। मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ और महत्वपूर्ण होता है। चौरासी लाख योनियों में मानव योनि को सबसे उत्तम माना गया है, क्योंकि इस योनि में जीव के पास बुद्धि और विवेक होता है जो दूसरी योनियों में नहीं होता। मानव योनि में जीव को यह मौका मिलता है कि वह अपने इहलोक और परलोक दोनों को सुधार सके। कबीर दास जी कहते हैं कि मानव जीवन पाकर जीव को इसे ईश्वर की भक्ति और उनके द्वारा बताए शुभ कार्यों में लगाना चाहिए। इस प्रकार पेड़ से पत्ता एक बार गिर जाता है तो दोबारा वह पेड़ में नहीं लग सकता, उसी प्रकार यह मानव जीवन दोबारा प्राप्त करना अत्यंत दुष्कर है, अत: उसे सार्थक करने का प्रयत्न करना चाहिए।


दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारंबार।
तरुवर ज्यौं पत्ता झरै, बहुरि न लागे डार।।


धार्मिक सहिष्णुता और मानवता को अपनाकर कबीर जी ने साम्प्रदायिक सौहार्द कायम करने पर जोर दिया है। वह कहते हैं कि मैं न तो हिन्दू हूं और न ही मुसलमान हूं। मेरा शरीर तो पांच तत्वों (धरती, जल, आग, आकाश और वायु) से मिल कर बना है और बाद में उसी में मिल जाना है।


हिन्दू कहूं तो मैं नहीं, मुसलमान भी नांहि।
पांच तत्व का पूतला, गैबी खेले मांहि।।


असली मानव-प्रेमी की पहचान यह है कि वह दूसरों के लिए लड़ता है। वह इतना दृढ़ निश्चयी होता है कि बेशक उसके शरीर का पुर्जा-पुर्जा कट जाए फिर भी सद्कर्म से पीछे नहीं हटता। इसका सीधा अर्थ यह है कि बाधाओं के आने पर भी वीर एवं धीर व्यक्ति अपने कर्तव्य पथ से कभी च्युत नहीं होते।


सूरा सो पहचानिए जो लड़ै दीन के हेत।
पुरजा-पुरजा कट मरे, कबहूं न छाड़ै खेत।।


मानव धर्म का सच्चा समर्थक, समर्पण की भावना से काम करता है। वह भगवान से कहता है, हे प्रभु! मुझमें मेरा कुछ भी नहीं है, जो कुछ भी है वह तुम्हारा है इसलिए तेरी वस्तु को तुझे समर्पित करने में मेरा क्या जाता है?

मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझको सौंपता, क्या लागे है मेरा।।


कबीरदास जी की इस साखी की महत्ता इस बात से मालूम होती है कि आरती में इसे आज भी गाया जाता है-तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा। संस्कृत में भी कहा गया है ‘त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये’। अत: मानव मात्र के लिए समर्पण की भावना रखना ही सच्चे अर्थ में मानव धर्म है। मानव इस नश्वर शरीर को गर्व के साथ लिए घूमता है, जिसका कोई ठिकाना नहीं है। अत: इस जीवन को सद्कर्म में लगा देना ही उचित है। मनुष्य का यह शरीर कच्चे घड़े के समान है जो जरा सा धक्का लगने पर फूट जाता है और कुछ भी हाथ नहीं आता। मनुष्य का जीवन तो पानी के बुलबुले की तरह नश्वर है। जिस प्रकार सुबह होते ही तारे छिप जाते हैं उसी प्रकार मानव जन्म भी अल्पकालीन है। अत: इसका सदुपयोग करना चाहिए।


पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यौं तारा प्रभात।।


कबीर जी ने एक ईश्वर की अवधारणा का समर्थन किया है। चाहे उसे हम जिस नाम से पुकारे सत् तो एक ही है। राम और रहीम एक ही हैं सिर्फ नाम अलग-अलग है। कबीरदास जी कहते हैं कि इस तरह दो नाम सुनकर हमें भ्रम में नहीं पडऩा चाहिए।


राम रहीम एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भ्रम करे न कोय।।


इस प्रकार, अगर हम कबीर जी के बताए मार्ग का अनुसरण करते हैं तो हमारे समाज की अधिकतर समस्याओं का समाधान स्वत: हो जाएगा और हम एक ऐसे समरस समाज का सृजन कर सकेंगे जिसमें सरबत का भला हो सके। आखिर गुरु नानकदेव जी का भी यही पैगाम है ‘नानक नाम चड़दी कला., तेरे भाणे सरबत दा भला।


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