हरि के दास का कायल हुआ अकबर, बन गया चोर
punjabkesari.in Friday, Nov 22, 2019 - 10:08 AM (IST)
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अकबर ने एक दिन तानसेन से कहा, ‘‘तानसेन! बहुत बार तुम्हारे संगीत को सुनकर मैं ऐसा आंदोलित हो जाता हूं। मैं जानता हूं कि इस पृथ्वी पर कोई व्यक्ति तुम्हारे जैसा नहीं है। तू बेजोड़ है, तू अद्वितीय है। लेकिन कभी-कभी एक सवाल मेरे मन में उठ आता है। कल रात ही उदाहरण के लिए उठ आया। जब तू गया था वीणा बजाकर और मैं गद्गद् हो रहा था और घंटों तल्लीन रहा। तू तो चला गया। वीणा भी बंद हो गई मगर मेरे भीतर कुछ बजता रहा, बजता रहा, बजता रहा और जब मेरे भीतर भी बजना बंद हुआ तो मुझे यह सवाल उठा। यह सवाल कई बार पहले भी उठा। आज तुझसे पूछ ही लेता हूं।’’
‘‘सवाल मुझे हमेशा उठता है कि तूने किसी से सीखा होगा, तेरा कोई गुरु होगा। कौन जाने, तेरा गुरु तुझसे भी अद्भुत हो। तूने कभी कहा नहीं, मैंने कभी पूछा नहीं। आज पूछता हूं, छिपाना मत। तेरे गुरु जीवित हैं? अगर जीवित हैं तो एक बार उन्हें दरबार ले आ। उनका संगीत सुनूं ताकि मेरी यह जिज्ञासा मिट जाए।’’
तानसेन ने कहा, ‘‘मेरे गुरु जीवित हैं। हरिदास उनका नाम है। वह एक संत हैं और यमुना के तट पर एक झोंपड़े में रहते हैं लेकिन जो आप मांग कर रहे हैं वह पूरी करवानी मेरे वश के बाहर है। उन्हें दरबार में नहीं लाया जा सकता। हां, दरबार को ही वहां चलना हो तो बात और है। वह यहां नहीं आएंगे। उनकी कुछ मांग न रही। मैं तो यहां आता हूं क्योंकि मेरी मांग है। मैं तो यहां आता हूं क्योंकि अभी धन में मेरा रस है। रही तुलना की बात तो आप मेरी उनसे तुलना न करें। कहां मैं-कहां वह। मैं तो कहीं पासंग में भी नहीं आता। मुझे तो भूल ही जाएं, उनके सामने मेरा नाम ही न रखें।’’
और भी अकबर कौतूहल से भर गया। उसने कहा, ‘‘तो कोई फिक्र नहीं। मैं चलूंगा। तू इंतजाम कर। आज ही चलेंगे।’’
तानसेन ने कहा, ‘‘और भी अड़चन है कि ‘‘वह फरमाइश से नहीं गाएंगे। इसलिए नहीं कि आप आएं तो वह गाएं।’’
अकबर ने कहा, ‘‘तो वह कैसे गाएंगे?’’
तानसेन ने कहा, ‘‘मुश्किलें हैं-बहुत मुश्किलें हैं। सुनने का एक ही उपाय है- चोरी से सुनना। जब वह बजाएं, तब सुनना। इसलिए कुछ पक्का नहीं है लेकिन मैं पता लगवाता हूं। आमतौर पर सुबह तीन बजे उठकर वह बजाते हैं। वर्षों उनके पास रहा हूं। उस घड़ी को वह नहीं छोड़ते। जब तारे विदा होने के करीब लगते हैं अभी जब सुबह हुई नहीं होती, उस मिलन स्थल पर-रात्रि के और दिन के-वह अपूर्व गीतों में फूट पड़ते हैं। अलौकिक संगीत उनसे जन्मता है। हमें छुपना पड़ेगा। हम दो बजे रात चलकर बैठ जाएं। कभी तीन बजे गाते हैं, कभी चार बजे गाते हैं, कभी पांच बजे। कौन जाने, कब गाएं। हमें छुपकर बैठना होगा, चोरी-चोरी सुनना होगा, क्योंकि उन्हें पता चल गया कि कोई है तो शायद न भी गाएं।’’
अकबर की तो जिज्ञासा ऐसी बढ़ गई थी कि उसने कहा, ‘‘चलेंगे। कोई फिक्र नहीं।’’
रात में जाकर दोनों छुप रहे। तीन बजे और हरिदास ने अपना इकतारा बजाया। अकबर के आंसू थामे न थमें। यूं आहलादित हुआ जैसा जीवन में कभी न हुआ था। फिर जब दोनों लौटने लगे रथ पर वापस तो रास्ते भर चुप रहा। ऐसी मस्ती में था कि बोल सूझे ही नहीं। जब महल की सीढ़ियां चढऩे लगा तब उसने तानसेन से कहा, ‘‘तानसेन मैं सोचता था कि तेरा कोई मुकाबला नहीं है। अब सोचता हूं कि तू कहां। तेरी कहां गिनती। तेरे गुरु का कोई मुकाबला नहीं है। तेरे गुरु गुदड़ी के लाल हैं। किसी को पता भी नहीं, आधी रात बजा लेते हैं, कौन सुनेगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा और यह अद्भुत गीत यूं ही बजता रहेगा और लीन हो जाएगा। तेरे गुरु के इस अलौकिक सौंदर्य, इस अलौकिक संगीत का क्या रहस्य है, क्या राज है? तू वर्षों उनके पास रहा, मुझे बोल।’’
उसने कहा, ‘‘राज सीधा-सादा है। दो और दो चार जैसा साफ-सुथरा है। मैं बजाता हूं इसलिए ताकि मुझे कुछ मिलें और वह बजाते हैं इसलिए क्योंकि उन्हें कुछ मिल गया है। वह जो मिल गया है वहां से उनका संगीत बहता है। मांग नहीं है, वहां है- अनुभव, आनंद। आनंद पहले है, फिर उस आनंद से बहता हुआ संगीत है। मेरा संगीत तो भिखारी का संगीत है। यूं तो वीणा बजाता हूं लेकिन आंखें तो उलझी रहती हैं- क्या मिलेगा। हृदय तो पूछता रहता-आज क्या पुरस्कार मिलेगा। आज सम्राट क्या देंगे। प्रसन्न हो रहे हैं या नहीं हो रहे हैं? आपके चेहरे को देखता रहता हूं। पूरा-पूरा नहीं होता वीणा में। इसलिए आप ठीक ही कहते हैं-मेरी उनसे क्या तुलना। वह होते हैं, तो पूरे होते हैं।’’
इस बात को ख्याल में रखना। जिस दिन तुम आनंद का अनुभव कर लोगे उस आनंद से अगर भक्ति उठी, अर्चना उठी, वंदना उठी तो उसका सौंदर्य और। वह इस पृथ्वी पर है पर इस पृथ्वी की नहीं। वह आकाश से उतरा हुआ फूल है। और जिस दिन तुम आनंद को अनुभव कर लोगे, उस दिन जो बोलोगे, हरिकथा ही होगी।