कौन थे राजा भर्तृहरि, पत्नी के धोखे से चोट खाकर 12 साल के लिए हो गए थे लुप्त
punjabkesari.in Thursday, Dec 26, 2019 - 03:22 PM (IST)
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भारत में ऐसी बहुते से जगहें जिनका संबंध हिंदू धर्म के मुख्य पात्रों से जुड़ा हुआ है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से जुड़ी रहस्यमयी इतिहास के बारे में। दरअसल, लोक मान्यताओं के आधार पर उज्जैन के राजा भर्तृहरि के संबंध में एक दिलचस्प कथा मिलती है। कुछ लोगों द्वारा कहा जाता है कि इस कथा के सही गलत होने की कुछ खास पुष्टि तो नहीं मिलती है पंरतु सही जनमानस में राजा भर्तृहरि से जुड़ी ये कथा काफी प्रचलित है।
कथाओं के अनुसार राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि थे। विक्रमादित्य के पहले भर्तृहरि ही राजा थे। कहा जाता है उस समय महान योगी गोरखनाथ का शहर में आगमन हुआ और वे राजा के दरबार में पहुंचे तो राजा भर्तृहरि ने उनके ज़ोरदार आदर सत्कार किया। जिससे प्रसन्न होकर गुरु गोरखनाथ ने भर्तृहरि को एक फल दिया और कहा कि इसे खाने से वह सदैव युवा एवं सुदर बने रहेंगे और साथ ही हरदम जोश में रहेंगे यानि उन्हें कभी बुढ़ापा नहीं आएगा।
लेकर गुरु गोरखनाथ से ये वरदान पाकर रादा भर्तृहरि ने पुन: उनका आदर सत्कार किया और उन्हें विदा किया। परंतु उनके जाने के बाद राजा ने सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है। तो अचानक से उनके मन में ख्याल आया कि क्यों नहीं यह फल पिंगला को दे दिया जाए। बता दें पिंगला राजा की तीसरे नंबर की अति सुंदर पत्नी थीं। उन्होंने सोचा कि यह फल पिंगला खा लेगी तो वह सदैव सुंदर और युवा बनी रहेगी।
अपनी तीसरी पत्नी पर राजा अत्यधिक मोहित थे अत: उन्होंने यह सोचकर वह फल अपनी तीसरे नंबर की अति सुंदर पत्नी पिंगला को दे दिया। कहते हैं कि रानी पिंगला भर्तृहरि पर नहीं बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मरती थी और उसके उससे संबंध थे जो बात राजा नहीं जानते थे। जब राजा ने वह चमत्कारी फल रानी को दिया तो रानी ने सोचा कि क्यों न यह फल कोतवाल को दे दिया जाए इससे वह लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति करता रहेगा। रानी ने यह सोचकर वो चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया।
लेकिन सबसे आश्चर्य कि बात तो यह निकली की कोतवाल एक वैश्या से प्रेम करता था और उसने उस चमत्कारी फल को उस वैश्या को यह सोचकर दे दिया को वह इसे खाकर सदा के लिए जावान और सुंदर बनी रहेगी जिसके चलते मेरी इच्छाओं की पूर्ति होती रहेगी।
परंतु वैश्या को जब वलो ल मिला तो उसने सोचा कि अगर वो इसे खा लेगी तो वह सदा के लिए जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे यह गंदा काम हमेशा के लिए करना ही पड़ेगा। इस नर्क से उसको भी मुक्ति नहीं मिलेगी। इसलिए वैश्या ने सोचा कि इस फल की सबसे ज्यादा ज़रूरत तो हमारे दयालु राजा को है। क्योंकि अगर वो हमेशा के लिए जवान रहेंगे तो लंबे समय तक प्रजा को सुख-सुविधाएं मिल सकेंगी। (बता दें कुछ कथाओं में वैश्या की जगह एक दासी का उल्लेख मिलता है।)
यही सोच-विचार करके वैश्या को वो चमत्कारी फल दे दिया जिसे पाकर राजा भर्तृहरि हैरान रह गए। इसी हैरानी भरे भाव से उन्होंने पूछा कि यह फल उसे कहां से प्राप्त हुआ। वैश्या ने बताया कि यह फल उसे उसके प्रेमी कोतवाल ने दिया है। भर्तृहरि ने तुरंत कोतवाल को बुलवाया और पूछा कि तुम्हें यह फल किसने दिया तो उसने बहुत सख्ती करने के बाद बताया कि यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया।
इस सच को सुनकर राजा दंग रह गए, जैसे उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई हो। अब वे सारा माजरा समझ गए कि रानी पिंगला उन्हें धोखा दे रही है। अपनी प्रिय पत्नी के धोखे से भर्तृहरि के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे अपना संपूर्ण राज्य विक्रमादित्य को सौंपकर उज्जैन की एक गुफा में तपस्या करने चले गए। कहा जाता है भर्तृहरि ने 12 वर्षों तक इस गुफा में तपस्या की। कहते हैं कि असल में यह सारी गुरु गोरखनाथ की लीला थी। बता दें राजा भर्तृहरि ने कई ग्रंथ लिखे जिसमें 'वैराग्य शतक' 'श्रृंगार शतक' और 'नीति शतक' काफी चर्चित हैं। बता दें ये गुफा उज्जैन में भर्तृहरि या भरथरी की गुफा एक शहर के बाहर सुनसान क्षेत्र में स्थित है जिसके पास ही शिप्रा नदी है। यहां पर एक गुफा और है जो कि पहली गुफा से अधिक छोटी है। कहते हैं कि यह गुफा राजा भर्तृहरि के भतीजे गोपीचन्द की है। गुफा में राजा भर्तृहरि की एक प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के सामने एक धुनी भी है, जिसकी राख हमेशा गर्म ही रहती है। प्रतिमा के पास एक और गुफा का रास्ता है। जिसके बारे में कहा जाता है ऐसा कि ये चारों धामों तक जाने का रास्ता है।