गुरू की तरह ही सेवक भी होता है अमूल्य
punjabkesari.in Sunday, Apr 21, 2019 - 05:36 PM (IST)

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गौतम बुद्ध एक दिन राजपथ से जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक तालाब के नज़दीक एक भिक्षुक स्नान करने के बाद बारी-बारी से छहों दिशाओं की ओर हाथ जोड़कर जप कर रहा था। बुद्धदेव ने उससे पूछा, ‘‘महाशय, आपने अभी-अभी छहों दिशाओं को प्रणाम किया। क्या आप मुझे बताएंगे कि इसका क्या मतलब है?’’
‘‘महात्मन, यह तो मुझे नहीं मालूम। उस व्यक्ति ने उत्तर दिया।’’
गौतम बुद्ध ने कहा, ‘‘जब आप मूल उद्देश्य ही नहीं जानते तो पूजा-पाठ और जप का क्या महत्व है?’’
तब वह भिक्षुक बोला, ‘‘भंते, अब आप ही बता दीजिए कि छहों दिशाओं को प्रणाम करने का क्या प्रयोजन है?’’
तथागत बोले, ‘‘माता-पिता और गृहपति की पूर्व दिशा, आचार्य की दक्षिण दिशा, स्त्री तथा पुत्र-पुत्रियों की पश्चिम और मित्र आदि की उत्तर दिशा है। रही बात ऊर्ध्व और अधोदिशा की तो ऊर्ध्व दिशा श्रमण-ब्राह्मण के लिए तथा सेवक के लिए अधोदिशा है। इन छहों दिशाओं को किया गया प्रणाम उक्त सभी व्यक्तियों को प्रणाम करने के समान होता है।’’
‘‘यह तो ठीक है भंते मगर सेवक को प्रणाम करने का क्या प्रयोजन है? सेवकों से उच्च होने के कारण वे हमें प्रणाम करते हैं।’’
तब भगवान बुद्ध ने उसे समझाया, ‘‘सेवक भी मनुष्य हैं और हम भी मनुष्य हैं। जब वे हमारी सेवा करते हैं तो हमारा भी कर्त्तव्य हो जाता है कि हम उनकी सेवा के बदले उनके प्रति स्नेह-वात्सल्य प्रकट करें। सेवकों को प्रणाम करते समय हम उनके प्रति स्नेह भाव व्यक्त कर रहे होते हैं। हमें उन्हें तुच्छ भाव से नहीं देखना चाहिए।’’
इस उत्तर से भिक्षुक संतुष्ट हो गया और उसने बुद्धदेव से कहा, ‘‘भंते, आज वास्तव में मुझे 6 दिशाओं को प्रणाम करने का अर्थ समझ में आया। साथ ही मेरी अज्ञानता से पर्दा उठा और समझ में आया कि सेवक हमारे लिए कितना सम्माननीय होता है।’’