रामनामी समुदाय: शरीर के हर हिस्से पर राम का नाम

punjabkesari.in Tuesday, Feb 20, 2024 - 07:24 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

 Ramnami community: छत्तीसगढ़ के कसडोल में पिछले सौ सालों से भी अधिक समय से महानदी के किनारे हर साल तीन दिनों के लिए अपनी तरह के अनूठे ‘बड़े भजन मेला’ में हजारों लोग अलग-अलग और सामूहिक रूप से रामायण का पाठ करते हैं। इस मेले में छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय के लोग पूरे उत्साह से हिस्सा लेते हैं जिनकी पहचान पूरी देह पर राम-राम के स्थायी गोदना या टैटू के कारण है। यह गोदना उनके सिर से लेकर पैर तक शरीर के हर हिस्से पर गुदवाया जाता है। इस समुदाय में सुबह के अभिवादन से लेकर हर काम की शुरुआत राम-राम से होती है।

PunjabKesari Ramnami community
Beginning of Ramnami sect रामनामी सम्प्रदाय की शुरूआत
कहा जाता है कि 19वीं सदी की शुरूआत में अछूत कह कर मंदिर में प्रवेश करने से मना करने पर परशुराम नामक युवा ने माथे पर राम-राम गुदवा कर इस रामनामी सम्प्रदाय की शुरुआत की। हालांकि रामनामी सम्प्रदाय के कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि 19वीं शताब्दी के मध्य में जांजगीर-चांपा जिले के चारपारा गांव में पैदा हुए परशुराम ने पिता के प्रभाव में मानस का पाठ करना सीखा लेकिन 30 की उम्र के होते-होते उन्हें कोई चर्म रोग हो गया।

उसी दौरान एक रामानंदी साधु रामदेव के संपर्क में आने से उनका रोग भी खत्म हुआ और उनकी छाती पर राम-राम का गोदना स्वत: उभर आया।। इसके बाद से उन्होंने राम-राम के नाम के जाप को प्रचारित-प्रसारित करना शुरू किया।

कहते हैं कि उनके प्रभाव में आ कर गांव के कुछ लोगों ने अपने माथे पर राम-राम गुदवा लिया और खेती-बाड़ी के अलावा बचे हुए समय में मंडलियों में राम-राम का भजन करना शुरू किया। इन लोगों ने दूसरे साधुओं की तरह शाकाहारी भोजन करना शुरू किया और शराब का सेवन भी बंद कर दिया।

रामनामी सम्प्रदाय की यह शुरुआत 1870 के आसपास हुई। इस सम्प्रदाय के लोगों ने अपने कपड़ों पर भी राम-नाम लिखना शुरू किया। चादर, गमछा, ओढ़नी सब जगह राम-राम लिखने की परम्परा शुरू हुई।

PunjabKesari Ramnami community

रामनामी समुदाय के चैतराम कहते हैं, ‘‘हमारे बाबा बताते थे कि माथे पर और देह पर राम-राम लिखे होने से नाराज कई लोगों ने रामनामियों पर हमले किए, उनके राम-राम लिखे गोदना को मिटाने के लिए गरम सलाखों से दागा गया, कपड़ों को आग के हवाले कर दिया गया लेकिन राम-राम को कोई हमारे हृदय से भला कैसे मिटाता ? प्रतिरोध स्वरूप, इसके बाद पूरे शरीर पर राम-राम का स्थायी गोदना गुदवाने की परम्परा शुरू हुई।’’

वहीं गुलाराम बताते हैं कि राम का नाम लेने के कारण उनके पूर्वजों को अदालत तक के चक्कर लगाने पड़े। आरोप था उनके द्वारा राम का नाम लेने से, राम का नाम अपवित्र हो रहा है। गुलाराम का कहना है कि हमारे लोगों ने अदालत में तर्क दिया कि हम जिस राम को जपते हैं, वह अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम नहीं, बल्कि वे राम हैं, जो चर-अचर सबमें व्याप्त है। हमारा सगुण राम से कोई लेना-देना नहीं है।

रायपुर के सैशन जज ने अंतत: 12 अक्तूबर, 1912 को फैसला सुनाया कि रामनामी न तो किसी के मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं और न ही हिंदू प्रतीकों की पूजा कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें अपने धार्मिक कामों से नहीं रोका जा सकता। इसके अलावा रामनामियों के मेले में सुरक्षा व्यवस्था के भी निर्देश बाद में जारी किए गए।

रामनामी समाज में पंडित या महंत की परम्परा नहीं है। इस समाज में मंदिर या मूर्ति पूजा का भी स्थान नहीं है। समाज में गुरु-शिष्य परम्परा भी नहीं है। यहां तक कि भजन जैसे आयोजनों में भी स्त्री-पुरुष भेद नहीं है।

PunjabKesari Ramnami community

The new generation is moving away दूर हो रही नई पीढ़ी
रामनामियों में पूरे शरीर पर गोदना कराने की परम्परा धीरे-धीरे कम होती जा रही है। पूरे शरीर पर गोदना करवाने में लगभग एक महीने का समय लग जाता है। पूरे शरीर पर गोदना करवाने वालों को ‘नख शिख’ कहा जाता है। गोदना का यह काम भी रामनामी समाज के लोग ही करते हैं। नई पीढ़ी भजन में तो शामिल होती है लेकिन गोदना नहीं कराना चाहती। 

PunjabKesari Ramnami community


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News