Ramayana: हनुमान जी ने 2 बार ‘तुलसीदास जी’ को करवाए थे श्रीराम के दर्शन
punjabkesari.in Wednesday, Aug 18, 2021 - 08:55 AM (IST)

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Ramcharitmanas: गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के महान कवि और रामभक्त थे। इनका जन्म 1554 की श्रावण शुक्ल को बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में मां हुलसी के गर्भ से हुआ। इनके पिता का नाम आत्मा राम शुक्ल था। जन्म के समय ये रोए नहीं और इनके मुख से राम नाम का साफ उच्चारण निकला। ज्योतिषियों की भविष्यवाणी से मां ने अपनी दासी चुनिया के साथ इन्हें भेज दिया तथा जन्म के दूसरे ही दिन मां का देहांत हो जाने के कारण चुनिया ने ही इन्हें पाला। जब ये 5 वर्ष के थे तो चुनिया भी भगवान को प्यारी हो गई। भगवान शंकर की कृपा से स्वामी नरहर्यानंद जी इन्हें अयोध्या ले गए। इनका यज्ञोपवीत संस्कार करके उनका नाम रामबोला रखा। इनकी बुद्धि अत्यंत प्रखर थी। ये जो भी अपने गुरु से सुनते तत्काल कंठस्थ कर लेते थे। गुरु के साथ अयोध्या से सोरों गांव चले आए जहां गुरु मुख से इन्हें पवित्र रामकथा श्रवण करने का अवसर मिला। फिर काशी जाकर इन्होंने 15 वर्षों तक वेद-शास्त्रों का गंभीर अध्ययन किया।
इन्हें एक दिन मनुष्य के रूप में एक प्रेत मिला जिसने इन्हें हनुमान जी का पता बतलाया। हनुमान जी से मिलकर तुलसीदास जी ने उनसे श्री रघुनाथ जी के दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमान जी ने कहा कि तुम्हें चित्रकूट में श्री रघुनाथ जी के दर्शन होंगे। चित्रकूट में इन्होंने रामघाट पर आसन जमाया।
एक दिन वह प्रदक्षिणा करने निकले ही थे यकायक मार्ग में उन्हें श्री राम जी के दर्शन हुए। तुलसीदास उन्हें देख कर खुश हुए मगर उन्हें पहचान न पाए। तभी हनुमान जी ने आकर उन्हें सारा भेद बताया तो ये पश्चाताप करने लगे।
इस पर हनुमान जी ने उन्हें सांत्वना दी और कहा प्रात: श्री राम फिर दर्शन देंगे। मौनी अमावस्या को बुधवार के दिन उनके सामने श्री राम प्रकट हुए। उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा बाबा हमें चंदन चाहिए क्या आप हमें चंदन दे सकते हैं? यह सोचकर कि कहीं ये इस बार भी धोखा न खा जाएं इसलिए हनुमान जी ने तोते का रूप धारण कर यह दोहा कहा :
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर।
तुलसीदास भगवान श्री राम की अद्भुत छवि देख कर सुध-बुध खो बैठे। अंतत: श्री राम ने अपने हाथ से चंदन लेकर अपने और तुलसीदास के मस्तक पर लगाया और अंतर्ध्यान हो गए।
दैवयोग से उस वर्ष रामनवमी के दिन वैसा ही संयोग आया जैसा त्रेतायुग में राम जन्म के दिन था। उस दिन प्रात: काल इन्होंने श्री रामचरित मानस की रचना प्रारंभ की। इस महान ग्रंथ का लेखन 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन में सम्पन्न हुआ। इसके बाद भगवान राम की कृपा से तुलसीदास काशी चले गए। वहां उन्होंने भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्री रामचरित मानस सुनाया।
रात को पुस्तक विश्वनाथ मंदिर में रख दी गई। प्रात: काल जब मंदिर के पट खोले गए तो पुस्तक पर लिखा पाया गया ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ उसके नीचे भगवान शंकर की सही (पुष्टि) थी। उस समय वहां उपस्थित लोगों ने ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ की आवाज भी कानों से सुनी।