Rambha Ekadashi Vrat Katha- रम्भा एकादशी व्रत से प्राप्त होता है बैकुंठ, पढ़ें पौराणिक कथा

punjabkesari.in Friday, Oct 17, 2025 - 06:58 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Rambha Ekadashi fast 2025: धार्मिक ग्रंथों में दीपावली से पहले आने वाली यह एकादशी सबसे खास मानी गई है। पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को रमा एकादशी के बारे में कहा था कि यह एकादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में दीपावली के 4 दिन पहले पड़ती है। इसे रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत सच्चे मन से व्रत करने से ‘वाजपेय यज्ञ’ के बराबर फल मिलता है तथा यह एकादशी सबसे शुभ और महत्वपूर्ण मानी गई है।

PunjabKesari Rambha Ekadashi Vrat Katha
यह भगवान श्री विष्णु को सभी व्रतों में सबसे अधिक प्रिय है और पुण्य कार्य का संचय करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। पद्म पुराण के अनुसार जो मनुष्य सच्चे मन से इस एकादशी का व्रत-उपवास रखता है, उसे बैकुंठ धाम प्राप्त होता है और जीवन की समस्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इस दिन भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी का साथ पूजन किया जाता है।

हिन्दू धर्म में यह एकादशी इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि श्रीहरि विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी का एक नाम रमा भी है, अत: यह एकादशी विष्णु जी को अधिक प्रिय है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी सुखों और ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। अत: दीवाली पूर्व आने वाली कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन से ही धन की देवी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

Rambha Ekadashi

Rambha Ekadashi story रम्भा एकादशी पौराणिक कथा
प्राचीन काल में मुचकुंद नामक एक धर्मनिष्ठ राजा था, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसकी मित्रता इंद्र, यम, कुबेर, वरुण और विभीषण जैसे देवों से थी। राजा की एक पुत्री थी -चंद्रभागा, जिसका विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ था।

एक बार शोभन अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया। संयोगवश उस समय कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की पुण्यदायिनी ‘रमा एकादशी’ आ रही थी। राजा मुचकुंद ने घोषणा करवा दी कि एकादशी के दिन राज्य का कोई भी प्राणी - मनुष्य क्या, पशु तक - अन्न या जल ग्रहण नहीं करेगा।

यह सुनकर चंद्रभागा को चिंता हुई क्योंकि उसके पति शोभन अत्यंत दुर्बल थे और व्रत सहन कर पाना उनके लिए कठिन था। शोभन ने अपनी पत्नी से कहा कि यदि उसने उपवास किया तो प्राण त्यागने पड़ सकते हैं।

तब चंद्रभागा बोली, ‘‘यदि आप इस व्रत को नहीं कर सकते तो किसी अन्य स्थान पर चले जाइए लेकिन यदि आप यहीं रहेंगे, तो व्रत का पालन करना ही होगा।’’

शोभन ने निश्चय किया कि वह व्रत अवश्य करेगा, जो भी परिणाम होगा, देखा जाएगा। उसने व्रत तो किया, परंतु दुर्बलता के कारण रात्रि में ही उसकी मृत्यु हो गई। राजा ने विधिपूर्वक उसका अंतिम संस्कार करवा दिया।

चंद्रभागा पिता की आज्ञा से सती नहीं हुई और अपने घर ही रहने लगी। रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को ‘मंदराचल पर्वत’ पर एक दिव्य, समृद्ध, रत्न जड़ित नगर प्राप्त हुआ। वहां वह अप्सराओं और गंधर्वों से युक्त, एक स्वर्ण सिंहासन पर आसीन हुआ - मानो स्वयं इंद्र हो।

Rambha Ekadashi

इसी दौरान सोम शर्मा नामक एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा पर निकलते हुए उस नगर में पहुंचा। उसने शोभन को पहचाना और उसके पास गया। शोभन ने उसे पहचान कर उसका स्वागत किया और उसे अपना हाल बताया।

उसने कहा, ‘‘यह सब रमा एकादशी के व्रत का फल है, लेकिन यह नगर स्थिर नहीं है क्योंकि मैंने यह व्रत श्रद्धा से नहीं किया था। यदि मेरी पत्नी चंद्रभागा को यह सब बताया जाए, तो शायद यह स्थिर हो सकता है।’’

ब्राह्मण राजा मुचकुंद के नगर आया और चंद्रभागा को सब बताया। चंद्रभागा यह जानकर अत्यंत हर्षित हुई और ब्राह्मण से विनती की कि वह उसे उसने पति के पास ले चले। वह बोली, ‘‘मैं अपने व्रतों के पुण्य से इस नगर को स्थिर कर दूंगी।’’

ब्राह्मण उसे लेकर मंदराचल पर्वत पर वामदेव ऋषि के आश्रम पहुंचा। वामदेव ने वेदमंत्रों से चंद्रभागा का अभिषेक किया। ऋषि के आशीर्वाद और एकादशी के व्रत के प्रभाव से उसका शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य लोक में प्रवेश कर गई। शोभन ने अपनी पत्नी को देखा तो अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसे अपने पास स्थान दिया।

चंद्रभागा ने कहा, ‘‘हे स्वामी! मैं आठ वर्ष की आयु से श्रद्धापूर्वक एकादशी का व्रत करती आ रही हूं। इस पुण्य के प्रभाव से यह नगर अब स्थिर हो जाएगा और प्रलय तक टिका रहेगा।’’

इसके पश्चात चंद्रभागा और शोभन दिव्य वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर सुखपूर्वक साथ रहने लगे।

मान्यता है कि जो श्रद्धा से रमा एकादशी का व्रत करते हैं या इसकी कथा सुनते/पढ़ते हैं, उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिलती है, यहां तक कि ब्रह्म हत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का पालन करने वाला भक्त अंत में ‘विष्णु लोक’ (बैकुंठ) को प्राप्त करता है।

PunjabKesari Rambha Ekadashi Vrat Katha

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News