Dhanteras Katha: स्वास्थ्य और धन का संगम है धनतेरस, पढ़ें कथा
punjabkesari.in Saturday, Oct 18, 2025 - 06:56 AM (IST)

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Dhanteras Katha 2025: दीपावली से पहले आने वाला धनतेरस पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरी का पूजन किया जाता है, जिन्हें आयुर्वेद के देवता और आरोग्य के प्रतीक माना गया है। इस दिन घर में माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा करने से धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लोग सोना, चांदी, बर्तन या सिक्के खरीदते हैं ताकि वर्ष भर घर में शुभ ऊर्जा बनी रहे। धनतेरस केवल खरीदारी का पर्व नहीं, बल्कि आयुर्वेद, स्वास्थ्य, धन और सौभाग्य का संगम है। इस दिन हमें यह स्मरण करना चाहिए कि सच्चा धन हमारा स्वास्थ्य है और आरोग्य ही सबसे बड़ी समृद्धि है।
धनतेरस और आयुर्वेद का गहरा संबंध
आयुर्वेद को ‘पंचम वेद’ कहा गया है और भगवान धन्वंतरी को इसका प्रवर्तक माना जाता है। उनका जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। यही कारण है कि धनतेरस को केवल धन-संपत्ति से नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और दीर्घायु से भी जोड़ा जाता है। कहा गया है कि “धन बिना जीवन नहीं, और स्वास्थ्य बिना धन का मूल्य नहीं।” इसलिए इस दिन स्वास्थ्य, आयुर्वेद और आरोग्य की कामना की जाती है।
समुद्र मंथन और भगवान धन्वंतरी का प्राकट्य
पुराणों के अनुसार, जब दैत्य और देवता दोनों ही शक्ति के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उन्हें क्षीर सागर के मंथन का सुझाव दिया। मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया। देवताओं ने पूंछ पकड़ी और दैत्यों ने मुख भाग। मंदराचल पर्वत डूबने लगा तो भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर पर्वत को अपने कवच पर स्थिर किया।
मंथन के दौरान सागर से कई अद्भुत वस्तुएं निकलीं जैसे
कामधेनु गाय – समृद्धि का प्रतीक
ऐरावत हाथी – इंद्र को प्राप्त हुआ
पारिजात वृक्ष, अप्सराएं और वारुणी सुरा – देवलोक की शोभा बने
कालकूट विष – जिसे भगवान शिव ने पी लिया और नीलकंठ कहलाए
माता लक्ष्मी – जिन्होंने भगवान विष्णु को पति रूप में वरण किया
अंत में एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए हाथों में अमृत कलश लिए हुए। वही थे भगवान धन्वंतरी, जिन्होंने मानव जाति को आयुर्वेद शास्त्र प्रदान किया। यही क्षण धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
धनतेरस पर करने योग्य शुभ कार्य
इस दिन दीप जलाने, सफाई करने और सोने-चांदी की वस्तुएं खरीदने की परंपरा है।
भगवान धन्वंतरी और माता लक्ष्मी की पूजा करें, और “ॐ धन्वंतरये नमः” मंत्र का जप करें।
धनतेरस की संध्या को दीपक जलाकर नकारात्मक ऊर्जा को दूर किया जाता है।