रामायण: जब हनुमान जी ने श्री राम से कहा, मैं न होता तो क्या होता ?
punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2020 - 07:34 AM (IST)

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एक बार हनुमान जी ने प्रभु श्री राम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माता को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीनकर इसका सिर काट लेना चाहिए, किंतु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गद्गद हो गया कि यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो क्या होता?
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता है कि यदि मैं न होता तो सीता जी को कौन बचाता? परन्तु आज आपने बचाया ही नहीं, बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब मैं समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं वह उसी से लेते हैं। किसी का कोई महत्व नहीं।
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में वानर आया हुआ है और वह लंका जलाएगा तो मैं बड़ी चिंता में पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है तो मैं क्या करूं?
पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिए दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मैं समझ गया कि मुझे बचाने के लिए प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई जब रावण ने कहा कि वानर को मारा नहीं जाएगा पर पूंछ में कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाए तो मैं गद्गद हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की ही बात सत्य थी, वर्ना लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबंध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझ से करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है।
इसलिए हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह ईश्वरीय विधान है। हम और आप तो निमित्त मात्र हैं इसलिए कभी भी यह भ्रम न पालें कि...मैं न होता तो क्या होता?