यहां जानें रामायण काल से जुड़े धार्मिक स्थल व उनकी मान्यताएं
punjabkesari.in Tuesday, May 18, 2021 - 04:51 PM (IST)
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लगातार हम आपको रामायण काल से जुड़े मंदिरों के बारे में जानकारी देते रहते हैं। इसी कड़ी में आज एक बार फिर से हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका संबंध श्री राम के साथ-साथ रामायण काल के कई प्रमुथ पात्रों से संबंध रखते हैं। तो आइए जानते हैं कौन से वो धार्मिक स्थल-
बारदुवारिया मंदिर (सरयू जी), मऊ (उ.प्र.)
यह स्थान मऊ के निकट ही है। यहां पुरानी सरयू तथा टोंस नदी का संगम है। यहां भगवान शिव का 12 द्वारों का एक बहुत प्राचीन मंदिर है। आज भी यहां कार्तिक पूर्णिमा को एक बड़ा मेला लगता है। लोक मान्यता के अनुसार विश्वामित्र मुनि श्री राम-लक्ष्मण को इसी मार्ग से ले गए थे। इसका नाम बारहद्वारा भी है।
कामेश्वर मंदिर, कारों, बलिया (उ.प्र.)
मार्ग में चलते हुए विश्वामित्र जी ने श्री राम को बताया था कि यहां भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। आज भी यहां शिव मंदिर तथा तालाब है। माना जाता है कि यहां भगवान शिव ने तपस्या की थी।
सुबाहु डीह, सुजायत, बलिया (उ.प्र.)
बलिया में चिटबड़ा गांव के पास जंगल में एक प्राचीन टीला है। इसे सुबाहू का घर माना जाता है। सुजायत सुबाहू से बना है। टीले के पास खुदाई में ताड़ का रस निकालने के पात्र, चिमटा, भट्ठी तथा कौडिय़ां आदि मिली हैं। टीले के पास ही एक प्राचीन पोखरा भी मिला है। यहां से 1 कि.मी. दूर मरची नामक गांव मारीच का गांव माना जाता है क्योंकि यह गांव उजड़ कर दूसरे स्थान पर बस गया है अत: अब स्थान नहीं केवल मारीच का नाम बचा है।
दशरथ कुंड, लोरी
लोक मान्यता के अनुसार ‘लोरी’ के निकट पहुंचकर श्रीराम को दशरथ जी के स्वर्गवास का आभास हो गया था। अत: उन्होंने सीता जी तथा लक्ष्मण जी को जानकारी दिए बिना दशरथ जी का श्राद्ध किया था।
(जनश्रुतियों के आधार पर तथा परिस्थितिजन्य)
कुमारद्वय, रामनगर
इलाहाबाद-चित्रकूट मार्ग पर राम नगर गांव के पास कुमारद्वय नामक विशाल तालाब है। स्थानीय भाषा में इसे कुंवर दो कहते हैं। श्रीराम-लक्ष्मण जी ने यहां स्नान कर शिव पूजा की थी।
(ग्रंथ उल्लेख : मानस 2/123/2)
वाल्मीकि आश्रम, लालपुर
लालपुर गांव के पास एक पहाड़ की कठिन चढ़ाई के बाद चोटी पर महर्षि वाल्मीकि का एक प्राचीन आश्रम है। यहां श्रीराम की महर्षि से भेंट हुई थी। लालपुर गांव के पास वाल्मीकि नामक नदी भी प्रवाहित होती है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/56/16, 17, 18, मानस 2/123/3 से 2/132 दोहा) —डा. राम अवतार
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