Poila Baisakh: आज है बंगला नववर्ष जानें, कैसे और क्यों मनाया जाता है पोइला बोइशाख
punjabkesari.in Saturday, Apr 15, 2023 - 06:59 AM (IST)

Poila Baisakh 2023: अनेकता में एकता भारत की विशेषता है। इस देश में विभिन्न जाति व समुदाय के लोगों का अपना अलग-अलग नववर्ष होता है। नववर्ष अलग होने से कैलेंडर भी अलग-अलग होता है। एक ही देश के अंदर कई क्षेत्रीय कैलेंडर प्रचलन में रहते हैं। भारत में ‘हिंदू चंद्र-आधारित’, ‘हिंदू सूर्य-आधारित’, ‘इस्लामिक चंद्र कैलेंडर’, ‘बंगाली कैलेंडर’ का उपयोग होता है। बंगाली कैलेंडर के अनुसार बंगला नववर्ष किसी साल 14 तो किसी वर्ष 15 अप्रैल को शुरू होता है, जिसके पहले दिन को हम ‘पोइला बैशाख’ के नाम से जानते हैं। इस साल पोइला बैशाख 15 अप्रैल को मनाया जाएगा यानी शनिवार से बंगाली नववर्ष (1430) की शुरूआत होगी।
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How do you celebrate pohela boishakh बंगाली कैलेंडर की शुरूआत को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। जहां कई इसकी उत्पति मुगल काल में मानते हैं, वहीं कइयों का मानना है कि इसकी उत्पति हिंदू शासन काल में हुई जो बंगाली नववर्ष को ‘विक्रमी हिन्दू कैलेंडर’ के पहले दिन बैसाखी से जोड़ कर देखती है, जिसे मुख्यत: सिखों और हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाता है। बंगाल के कुछ गांवों में मान्यता है कि इस कैलेंडर का नाम बंगाल के एक राजा ‘बिक्रमदित्तो’ के नाम पर पड़ा।
How do we celebrate Bangla New Year: पोइला बैशाख या बंगला नववर्ष विभिन्न जगहों (जैसे पश्चिम बंगाल, बंगलादेश, त्रिपुरा और अन्य उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों) में बंगाली समुदाय के लोगों के द्वारा खूब धूमधाम से मनाया जाता है। भारत में यह दिन भगवान गणेश जो कि शुभारंभ के देवता हैं और देवी लक्ष्मी जो कि धन व समृद्धि की देवी हैं, को समर्पित होता है। लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से समृद्धि आती है।
Why do we celebrate Poila Baisakh: बंगाल में सुबह-सुबह बच्चे प्रभात फेरी निकालते हैं और रबींद्रनाथ टैगोर के लिखे गीतों पर नृत्य करते हैं। असम में इस दिन लोग बुजुर्गों से मिलने जाते हैं। औरतें एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हैं। लोग एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हैं। लोगों के लिए इस दिन का महत्व आर्थिक तौर पर भी है। बही-खातों पर लोग सिंदूरी रंग लगाते हैं। कुछ जगहों पर लोग इस दिन की शुरूआत गीत-संगीत और नृत्य से करते हैं और सड़कों पर कलश व मंगल शोभायात्रा निकालते हैं। दिन की शुरूआत कलाकारों द्वारा रबींद्रनाथ टैगोर के गीत गाकर की जाती है। लोग नदी किनारे नए साल का पहला सूर्योदय देखने जाते हैं। भारत के उलट बंगलादेश का उत्सव काफी सादगी वाला होता है। औरतें साड़ी पहनती हैं और अपने बाल लाल व सफेद फूलों से सजाती हैं और पुरुष पारम्परिक पोशाक पहनते हैं। ढाका की ‘नैशनल फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट्स’ शोभायात्रा का आयोजन कराती है, जिसमें सुबह-सुबह बंगाली संस्कृति की समृद्धि और विविधता को दर्शाती झांकी निकाली जाती है।