Pind Daan before death: इस मंदिर में जीते जी अपना पिंडदान करते हैं लोग
punjabkesari.in Wednesday, Sep 10, 2025 - 03:23 PM (IST)

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Pind Daan before death: पितृपक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक रहता है। शास्त्रों में पितृपक्ष के दौरान मृतकों का श्राद्ध करने का रिवाज बताया गया है, जिन्हें पितृ कहा जाता है। कहते हैं कि पितृपक्ष में श्राद्ध और पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। यह तो हुई मृत लोगों के श्राद्ध की बात लेकिन क्या आपने कभी जीते जी लोगों को अपना ही श्राद्ध करने के बारे में सुना है ? बिहार के गया जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां लोग जीवित रहते हुए अपना ही श्राद्ध, पिंडदान करते हैं। आइए आज आपको इस मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं।
Unique tradition in Gaya: गया में पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता। कहते हैं कि यहां श्राद्ध करने के बाद व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। गया की भूमि का महत्व इसी से पता चलता है कि त्रेता युग में फल्गु नदी के तट पर भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए यहीं श्राद्धकर्म और पिंडदान किया था।
कहां होता है आत्मश्राद्ध ?
आज गया में करीब 54 पिंडवेदियां और 53 ऐसे स्थल हैं, जहां पितरों के लिए पिंडदान किया जाता है। लेकिन गया की जनार्दन मंदिर वेदी पूरी दुनिया में इकलौता ऐसा स्थल है, जहां आत्मश्राद्ध यानी जीते जी खुद का पिंडदान किया जाता है। यह मंदिर गया में भस्मकूट पर्वत पर मां मंगला गौरी मंदिर के उत्तर में स्थित है। कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु स्वयं जनार्दन स्वामी के रूप में पिंड को ग्रहण करते हैं।
इस मंदिर में वे लोग पिंडदान करने आते हैं, जिनकी कोई संतान नहीं है, या फिर परिवार में उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई नहीं है। घर से मन विमुख या वैरागी हो चुके लोग भी यहां अपने लिए पिंडदान करने आते हैं।
आत्मश्राद्ध के तीन प्रमुख चरण
यहां आत्मश्राद्ध के लिए तीन दिवसीय प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है। इसमें एक जीवित इंसान खुद के लिए पिंडदान करता है। ऐसे लोगों को गया तीर्थ आने के बाद पहले वैष्णव सिद्धि का संकल्प लेना पड़ता है। पापों का प्रायश्चित करना पड़ता है। इसके बाद भगवान जनार्दन स्वामी के मंदिर में विधिवत जाप, तप और पूजन के बाद आत्मश्राद्ध किया जाता है।
इस दौरान वायु पुराण में आत्मश्राद्ध के लिए वर्णित श्लोकों का जाप किया जाता है। इसके बाद दही-चावल से निर्मित तीन पिंड बनाकर भगवान जनार्दन को अर्पित किए जाते हैं। गौर करने वाली बात है कि इस पिंड में तिल का इस्तेमाल नहीं किया जाता, जबकि मृत व्यक्ति के लिए किए जाने वाले श्राद्ध में तिल का प्रयोग अनिवार्य है।
पिंड अर्पित करते हुए लोग भगवान जनार्दन स्वामी से यह प्रार्थना करते हैं- ‘हे भगवान! जीवित रहते हुए मैं स्वयं के लिए पिंड प्रदान कर रहा हूं। इसके साक्षी आप ही हैं। जब हमारी आत्मा इस शरीर का त्याग कर देगी, जब हमारा शरीर मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा, तो आपके आशीर्वाद से हमारा उद्धार और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। यह कामना करते हुए मैं यह पिंड आपको अर्पित करता हूं।’