परशुराम जी से जुड़ी ये धार्मिक कथा उड़ा देगी आपके होश

punjabkesari.in Tuesday, May 03, 2022 - 04:48 PM (IST)

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धार्मिक शास्त्रों में किए वर्णन के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन श्री हरि विष्णु के छठें अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था। जिस कारण इस दिन को इनके जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इस खास उपलक्ष्य के मौके पर हम आपको भगवान परशुराम जी से जुड़ी ही एक धार्मिक कथा बताने जा रहे हैं, जिससे परशुराम जी का आज्ञाकारी होने का पता चलता है। तो आइए देर किए बिना जानें क्या है ये धार्मकि कथा- 
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लगभग लोग जानते हैं कि भगवान परशुराम में अत्यंत गुस्सा था, उन्हें हर छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आ जाता था। बता दें कि उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार कहा जाता है। भगवान परशुराम के वैसे तो कई वाक्या आपने सुने होंगे। उन्हीं में से एक वाक्या ये भी है कि भगवान परशुराम ने अपनी ही मां का सिर काट दिया था।  लेकिन इसके पीछे का कारण शायद ही किसी को मालूम होगा। तो आज हम अपने चैनल के माध्यम से इसकी सच्चाई बताने जा रहे हैं। कि अपनी मां का सिर काटने के पीछे भगवान परशुराम का गुस्सा नहीं था, बल्कि कहानी तो कुछ और ही थी। पर दोस्तों इससे पहले अगर आपने हमारा चैनल कुंडली टीवी सब्सक्राइब नहीं किया। तो ज़रूर करें, जिससे कि हमारे चैनल की सारी अपडेट्स आपको मिल सकें।चलिए आपको बताते हैं कि आखिर भगवान परशुराम ने अपनी मां का सिर क्यों काटा था। इससे पहले बता देते हैं कि भगवान परशुराम के माता-पिता कौन थे। दोस्तों भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे। इसके अलावा ऋषि जमदग्नि और रेणुका के 4 पुत्र और थे। ऋषि जमदग्नि को उनके क्रोध के लिए जाना जाता है। परशुराम, भगवान शिव के पुत्र थे और उन्हेंर घोर तपस्याि के बाद भगवान से परशु प्राप्तह हुआ था जो एक प्रकार का शस्त्र  था। उसी शस्त्रि के मिलने के बाद उनका नाम परशुराम पड़ा। 
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वे अपने पिता की किसी भी बात को अनसुना नहीं करते थे, बल्कि उनके लिए उनके पिता से मुख से निकली हुई बात पत्थर की लकीर हो जाती थी। बता दें कि परशुराम को प्रथम योद्धा ब्राहम्ण  के रूप में जाना जाता है और उन्हें  ब्राहम्ण।क्षत्रिय भी कहा जाता था, क्योंाकि वे पैतृक ब्राहम्णा ही थे, लेकिन उनमें गुण एक क्षत्रिय की तरह थे। उनकी माता, रेणुका एक क्षत्रिय की बेटी थी। परशुराम के माता-पिता, ऋषि जमदग्नि और रेणुका, बहुत आध्याभत्मिक किस्मत के थे। उनकी माता को पानी पर पूरा अधिकर था और उनके पिता का अग्नि पर अधिकार था। कहा जाता है कि रेणुका, गीली मिट्टी के घड़े में भी पानी को भर लेती थी। चलिए फिर आपको बताते हैं कि परशुराम ने अपनी मां का सिर क्यों काटा था। एक बार की बात है, ऋषि ने अपनी पत्नीश रेणुका को पानी भरकर लाने को कहा। जब वो नदी के पास पानी लेने पहुंची तो उन्हें पानी भरते समय एक बहुत ही सुंदर बालक दिखा। जिससे देखते ही वे मदहोश हो गई। और उनमें इतना खो गई कि उन्हें वापस अपने पति के पास जाने की सुध न रही। और काफी समय बाद उन्हें वापस जाने का याद आया तो वे जल्दी-जल्दी वापस ऋषि के पास लौटी। 
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तब तक ऋषि गुस्से से आग बबुला हो चुके थे। और अपने बेटों को अपनी मां को मारने का आदेश दिया। लेकिन मां के मोह की वजह वे ऐसा नहीं कर पाए। तब ऋषि ने अपने आज्ञाकारी पुत्र परशुराम को इस काम के लिए चुना। यही नहीं फिर ऋषि ने मां के साथ चारों भाइयों को मार डालने का बी आदेश दिया। जिसके बाद परशुराम ने झट से उनकी बात मान ली। क्योंकि परशुराम ऋषि की ताकत को जानते थे। वो जानते थे कि अगर पिता जी खुश हो गए, तो वे मन चाहा वरदान भी दे देंगे जिससे वो अपनी मां और भाइयों को वापस जिंदा कर सकता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए। परशुराम ने अपने शस्त्र परशु से मां समेत भाइयों का सिर धड़ से अलग कर दिया। इससे ऋषि प्रसन्नस हो गए और उन्होशने अपने पुत्र से एक वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने अपने पिता से वरदान मांगा कि - वे उनकी माता और भाइयों को जीवित कर दें और उनकी याद्दशात को उस दौरान के लिए खत्म  कर दें, जब उन्होंंने सिर को धड़ से अलग कर दिया था। चूंकि, ऋषि जमदग्नि को दिव्य  शक्तियां प्राप्त  थी, तो उन्होेने रेणुका को जीवनदान दे दिया। तो यही वजह थी परशुराम ने अपनी ही मां का सिर धड़ से अलग कर दिया था।


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Content Writer

Jyoti

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