Pandharpur mela 2021: कौन है श्री हरि विट्ठल, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथा व इनके पूजन मंत्र

punjabkesari.in Friday, Jul 16, 2021 - 03:31 PM (IST)

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अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको आगे भी बता चुके हैं कि जगन्नाथ और कांवड़ यात्रा के बाद पंढरपुर का मेला आता है। जो हर वर्ष देवशयनी एकादशी के दिन मनाया जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक वर्ष इस दिन देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों की तादाद में लोग भगवान विट्ठल की महापूजा के लिए एकत्रित होते हैं। बता दें हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन होती है जो इस बार 20 जुलाई 2021 दिन मंगलवार को है। बता दें महाराष्ट्र के पंढरपुर में भगवान श्री कृष्ण का प्रसिद्ध व भव्य मंदिर है, जहां श्री कृष्ण श्री हरि विट्ठल के साथ-साथ देवी लक्ष्मी और माता रुक्मणी जी विराजमान हैं। आइए जानते हैं भगवान विट्ठल से जुड़ी पौराणिक कथा तथा इनके पूजन मंत्र- 

विट्ठल रूप की कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार 6वीं सदी में संत पुंडलिक हुए थे जो अपने माता-पिता के परम भक्त थे और वे भगवान श्री कृष्ण को अपना इष्टदेव मानते थे। शास्त्रों में उनके माता-पिता के भक्त होने से जुड़ी कथा वर्णित है। जिसके मुताबिक एक समय ऐसा था जब उन्होंने अपने इष्ट देव की भक्ति छोड़कर माता पिता को भी घर से बहार निकाल दिया था परंतु बाद में उन्हें अपने इस कर्म पर घोर पछतावा हुआ और वे माता पिता की भक्ति में लीन हो गए। परंतु साथ-साथ वे श्रीकृष्ण की भी भक्ति करने लगे। कहा जाता है उनकी इसी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन श्री कृष्ण देवी रुक्मणी के साथ उनके द्वार पर प्रकट हुए और पुंडलिक को स्नेह से पुकारकर कहा, 'पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।'

कथाओं की मानें तो उस वक्त पुंडलिक अपने पिता के पैर दबा रहे थे और उनकी पीठ द्वार की ओर थी। पुंडलिक ने कहा कि मेरे पिता जी शयन कर रहे हैं, इसलिए अभी मैं आपका स्वागत करने में सक्षम नहीं हूं। इसलिए प्रात:काल तक आपको प्रतिक्षा करनी होगी। आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा कीजिए और वे पुन: पैर दबाने में लीन हो गए।  कहा जाता है भगवान ने अपने भक्त की आज्ञा का पालन किया और कमर पर दोनों हाथ धरकर और पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गए। ऐसी मान्यता है कि ईंट पर खड़े होने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण को विट्ठल कहा जाने लगा और भविष्य में उनका यही स्वरूप लोकप्रिय हो गया।य़ बता दें  इन्हें विठोबा के नाम से भी जाना जाता है।  प्रचलित कथाएं हैं कि पिता की नींद खुलने के बाद पुंडलिक द्वार की और देखने लगे परंतु तब तक प्रभु मूर्ति रूप ले चुके थे। जिसके बाद पुंडलिक ने विट्ठल रूप को ही अपने घर में विराजमान किया। कहा जाता है कि यही स्थान पुंडलिकपुर व अपभ्रंश रूप में पंढरपुर कहलाया, जो वर्तमान समय में महाराष्ट्र का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है। पुंडलिक को वारकरी संप्रदाय का ऐतिहासिक संस्थापक भी माना जाता है, जो भगवान विट्ठल की पूजा करते हैं। यहां भक्तराज पुंडलिक का स्मारक बना हुआ है। 

इन मंत्रों से भगवान विट्ठल की पूजा करें- 
श्री हरि विट्ठल जी का मंत्र :
विट्ठला विट्ठला जपें। 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री विट्ठलाय नम: कृष्णवर्ण विट्ठल नम: श्री विट्ठल आभायामी
ॐ विठोबाय नम:
हरि ॐ विट्ठलाय नम:


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Content Writer

Jyoti

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