समय के साथ व्यक्ति को खुद में लाना चाहिए ये गुण

punjabkesari.in Saturday, Jan 28, 2017 - 02:06 PM (IST)

एक व्यापारी था जिसके पास उसके अपने 5 ऊंट थे। जिन पर सामान लादकर वह शहर-शहर घूमता व कारोबार करता था और अपना व्यापार किया करता था। एक बार लौटते हुए रात हो गई तो वह रात को आराम करने के लिए एक सराय में रुका और पेड़ों से ऊंटों को बांधने की तैयारी करने लगा। 4 ऊंट तो बंध गए लेकिन 5वें के लिए रस्सी कम पड़ गई। उसे जब कोई उपाय नहीं सूझा तो सराय में मालिक से सहायता मांगने की सोची। वह सराय के अंदर जा ही रहा था कि उसे गेट के बाहर एक फकीर मिला जिसने व्यापारी से पूछा कि तुम कुछ परेशान लग रहे हो, बताओ क्या परेशानी है, हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊं। व्यापारी ने उसे अपनी समस्या बताई तो फकीर बड़े जोर से हंसा और उसने कहा कि 5वें ऊंट को भी ठीक उसी तरह बांध दो जिस तरह तुमने बाकी ऊंटों को बांधा है। 

 

फकीर के यह कहने पर व्यापारी ने थोड़ा खीजकर और हैरान होकर कहा लेकिन रस्सी है कहां? इस पर फकीर ने कहा उसे तुम कल्पना की रस्सी से बांधो। व्यापारी ने ऐसा ही किया और उसने ऊंट के गले में अभिनय करते हुए काल्पनिक रस्सी का फंदा डालने जैसा व्यवहार किया और उसका दूसरा सिरा पेड़ से बांध दिया। ऐसा करते ही ऊंट बड़े आराम से बैठ गया। व्यापारी सराय के अंदर चल गया और जाकर बड़े आराम से बेफिक्री की नींद सोया। 

 

सुबह उठा और चलने की तैयारी की। उसने बाकी के ऊंटों को खोला तो सारे ऊंट खड़े हो गए और चलने को तैयार हो गए लेकिन 5वें ऊंट को हांकने के बाद भी वह खड़ा नहीं हुआ। इस पर व्यापारी गुस्से में आकर उसे मारने लगा लेकिन फिर भी ऊंट नहीं उठा। इतने में कल वाला फकीर आया तो उसने कहा कि पागल इस बेजुबान को क्यों मार रहे हो। अब कल तुम यह बैठ नहीं रहा था तो परेशान थे और आज जब यह आराम से बैठा है तो भी तुमको परेशानी है। इस पर व्यापारी ने कहा कि महाराज मुझे जाना है। फकीर ने कहा इसे खोलोगे तभी उठेगा न। इस पर व्यापारी ने कहा मैंने कौन-सा इसे बांधा था, मैंने तो केवल बांधने का नाटक भर किया था। तो फकीर कहने लगा कि जैसे कल तुमने इसे बांधने का नाटक किया था वैसे ही अब खोलने के लिए नाटक करो। व्यापारी ने ऐसे ही किया और पल भर में ऊंट खड़ा हो गया। अब फकीर ने पते की बात बोली कि जिस तरह ऊंट अदृश्य रस्सियों से बंधा है उसी तरह लोग भी पुरानी रूढ़ियों से बंधे हैं और आगे बढ़ना नहीं चाहते जबकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।


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