कभी नहीं करना चाहिए मांस का सेवन वरना...

punjabkesari.in Friday, Aug 09, 2019 - 04:38 PM (IST)

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खाने का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। लोग अपनी भूख मिटाने के लिए कई बार कुछ भी खाने के लिए तैयार हो जाते हैं। कई लोग भूख मिटाने के लिए मांस के सेवन भी करते हैं। जोकि हिंदू धर्म में बहुत ही गलत माना जाता है। हिंदुओं के लिए मांस खाना सबसे बड़ा पाप माना जाता है। क्योंकि किसी निर्जीव की हत्या करना महापाप माना गया है। शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि किसी जीव की हत्या करने वाले को घोर नरक भोगना पड़ता है। महाभारत में कई ऐसे श्लोक हैं जो मांस न खाने के आदेश देते हैं। आइए जानते हैं उन श्लोकों और उनके अर्थों के बारे में।
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स्वमांसं परमांसेन यो वर्धयितुमिच्छति।
नाति क्षुद्रतरस्तस्मात्स नृशंसतरो नर।।

इस श्लोक का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति दूसरों के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे बढ़कर नीच और निर्दयी मनुष्य दूसरा कोई नहीं है। 

अधृष्यः सर्वभूतानां विश्वास्यः सर्वजन्तुषु।
साधूनां सम्मतो नित्यं भवेन्मांसं विवर्जयन्।।

जो व्यक्ति मांस का त्याग कर देता है, वह सब प्राणियों में आदरणीय, सब जीवों का विश्वसनीय और सदा साधुओं से सम्मानित होता है। 
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ददाति यजते चापि तपस्वी च भवत्यपि।
मधुमांसनिवृत्येति प्राह चैवं बृहस्पति।।

बृहस्पति जी का कहना है कि जो व्यक्ति मद्य और मांस का त्याग कर देता है वह दान देता, यज्ञ करता है और तप करता है। इसका मतलब यह है कि उस व्यक्ति को इन तीनों चीजों का लाभ मिलता है। 

एवं वै परमं धर्मं प्रशंसन्ति मनीषिणः।
प्राणा यथाऽऽत्मनोऽभीष्टा भूतानामपि वै तथा।।

इस श्लोक का यह अर्थ है कि पुरुष अहिंसारूप परमधर्म की तारीफ करते हैं। जैसे व्यक्ति को अपना प्राण प्रिय होता है वैसे ही सभी प्राणियों को अपने-अपने प्राण प्रिय होते हैं। 
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न हि मांसं तृणात् काष्ठादुपलाद् वापि जायते।
हत्वा जन्तुं ततो मांसं तस्माद् दोषस्तु भक्षणे।।

मांस न तो घास से, न लकड़ी से या फिर न तो पत्थर से पैदा होता है। मांस प्राणी की हत्या करने पर ही मिलता है। इसलिए मांस खाने में दोष है। 


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