Navratri 1st Day: नवरात्रि की पहले दिन इस विधि से करें पूजा, ऐश्वर्या बरसाएंगी मां शैलपुत्री

punjabkesari.in Thursday, Oct 03, 2024 - 08:16 AM (IST)

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Shardiya Navratri 1st Day 2024: इस साल नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर 2024 को होगी। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया जाता है और मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री राजा हिमालय की पुत्री हैं इसलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं। यह वृषभ (बैल) पर विराजती हैं। चलिए नवरात्रि के पहले दिन पर मां शैलपुत्री की पूजा विधि, कलश स्थापना का मुहूर्त, मंत्र और विशेष भोग के बारे में जानते हैं-

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Maa Shailputri's favorite Bhog मां शैलपुत्री का प्रिय भोग
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को गाय के दूध से बनी मिठाई का भोग लगा सकते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गाय के घी का भोग लगाने से रोगों से छुटकारा मिलता है। मां शैलपुत्री को दूध, शहद, घी, फल और नारियल का भोग लगाना बेहद शुभ माना जाता है।

Maa Shailputri's mantra jaap मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों का करें जाप
 नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र 'ऊँ शं शैलपुत्री दैव्ये नमः' का जाप कर सकते हैं।

Importance of worshiping Maa Shailputri मां शैलपुत्री के पूजन का महत्व
जीवन के समस्त कष्ट क्लेश और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए एक पान के पत्ते पर लौंग, सुपारी और मिश्री रख कर मां शैलपुत्री को अर्पण करें। मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और कन्याओं को उत्तम वर मिलता है। नवरात्रि के प्रथम दिन उपासना में साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र जागृत होता है और अनेक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां शैलपुत्री की पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।

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Ghat sthapana shubh muhurat घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य पंडित सुधांशु तिवारी जी बताते हैं कि इस बार दिनांक 3 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होंगे। इस दिन यदि प्रतिपदा तिथि की बात करें तो 52 घड़ी दो पल अर्थात अगले दिन प्रात: 2:58 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी। यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन हस्त नक्षत्र 23 घड़ी 27 पल अर्थात शाम 3:32 बजे तक है। इस दिन ऐंद्र नामक योग 55 घड़ी 36 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 4:24 बजे तक है। पंचांग के अनुसार, 3 अक्टूबर को घट स्थापना का मुहूर्त प्रातः 6 बजकर 15 मिनट से लेकर 7 बजकर 22 मिनट तक होगा। घटस्थापना के लिए कुल 1 घंटा 07 मिनट का समय मिलेगा। इसके अलावा घट स्थापना अभिजीत मुहुर्त में भी किया जा सकता है। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा, जिसके लिए 47 मिनट का समय मिलेगा।

Maa Shailputri's puja vidhi इस विधि से करें मां शैलपुत्री की पूजा
मां शैलपुत्री के विग्रह या चित्र को लकड़ी के पटरे पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं अति प्रिय हैं इसलिए मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र या सफेद फूल अर्पण करें और सफेद बर्फी का भोग लगाएं। एक साबुत पान के पत्ते पर 27 फूलदार लौंग रखें। मां शैलपुत्री के सामने घी का दीपक जलाएं और एक सफेद आसन पर उत्तर दिशा में मुंह करके बैठें।

ॐ शैलपुत्रये नमः मंत्र का 108 बार जाप करें। जाप के बाद सारी लौंग को कलावे से बांधकर माला का स्वरूप दें। अपने मन की इच्छा बोलते हुए यह लौंग की माला मां शैलपुत्री को दोनों हाथों से अर्पण करें। ऐसा करने से आपको हर कार्य में सफलता मिलेगी। पारिवारिक कलह हमेशा के लिए खत्म होंगे।

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Story of Maa Shailputri मां शैलपुत्री की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिमालयराज के यहां जब पुत्री का जन्म हुआ तो उनका नाम शैलपुत्री रखा गया। इनका वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें वृषारूढा के नाम से भी पुकारा जाता है। मां शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है।उन्हें सती के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वो सती मां का ही दूसरा रूप हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रण मिला लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। तब भगवान शिव ने मां सती से कहा कि यज्ञ में सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया है लेकिन मुझे नहीं, ऐसे में मेरा वहां पर जाना सही नहीं है। माता सती का प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकर ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंची तो उन्हें केवल अपनी मां से ही स्नेह मिला। उनकी बहनें व्यंग्य और उपहास करने लगीं जिसमें भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उन्हें अपमानजनक शब्द कहे जिससे मां सती बहुत क्रोधित हो गईं। अपने पति का अपमान वह सहन नहीं कर पाईं और योगाग्नि में जलकर खुद को भस्म कर लिया। इस दुख से व्यथित होकर भगवान शंकर ने यज्ञ का विध्वंस कर दिया।

मां सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। इन्हें पार्वती और हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ और वो भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें घी का भोग लगाया जाता है।

आचार्य पंडित सुधांशु तिवारी
प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य
सम्पर्क सूत्र:- 9005804317

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Content Writer

Niyati Bhandari

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