...तो क्या नारद जी ने दिया था अपने प्रभु श्री हरि को श्राप?
punjabkesari.in Friday, May 08, 2020 - 06:24 PM (IST)
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अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको नारद जयंती से जुड़ी लगभग जानकारी दे चुके हैं। मगर एक ऐसी एक जावकारी और है जो शायद अब तक आप में से बहुत कम लोग जाने होंगे। जी हां, ऐसा कहा जाता है नारद मुनि जिनका हर समय ध्यान करते हैं, जिनका नाम उनके लिए अमूल्य है, उन्होंने उन्हें ही श्राप दे दिया था। आप गलत नहीं है, सही सोच रहे हैं, हर समय जिनका नारद मुनि जप करते हैं वो कोई और नहीं नारायण भगवान जिन्हें कोई श्री हरि के नाम से जानता है तो कोई विष्णु जी के नाम से। धार्मिक ग्रंथों में इस पूरे सदंर्भ से जुड़ी कथा वर्णित है।तो चलिए अधिक देर न करते हुए जानते हैं इस कथा के बारे में-
एक बार नारद जी को घमंड हो गया और भगवान शंकर को कहने लगे कि उनकी तपस्या को कोई भी भंग नहीं कर सकता है। शिव जी ने उनसे कहा कि यह बात श्रीहरि के सामने प्रकट मत करना। देवर्षि जब विष्णु जी के पास गए और उनके समक्ष भी वही बातें कहनी शुरु कर दी। भगवान समझ चुके थे कि नारद को घमंड हो गया है।
विष्णु जी ने सोचा कि नारद का घमंड तोड़ना ही होगा, यह शुभ संकेत नहीं हैं। श्रीहरि की माया से देवर्षि एक सुंदर नगर में पहुंचे। जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। नारद जी उस राजकुमारी को देख कर मोहित हो गए थे। उसका रूप और सौंदर्य नारद की तपस्या को भंग कर चुका था। अब वे भी उसके स्वयंवर में जाना चाहते थे। वह वापिस भगवान विष्णु के पास आए और कहा कि मुझे आप अपना सुंदर रूप मुझे दे दीजिए, जिससे वह कन्या मुझे ही अपने पति के रूप में चुने। भगवान ने भी एेसा ही किया। किंतू स्वयंवर में जब वह पहुंचे तो उनका मुख वानर के जैसा हो गया था। यह सब शिवगण देक रहे थे, जोकि ब्राह्मण का वेष बनाकर वहां शमिल थे। जब राजकुमारी स्वयंवर में आई तो बंदर के मुख वाले नारद जी को देखकर बहुत क्रोधित हुई। श्रीहरि भी वहां एक राजा के रूप में खड़े थे। राजकुमारी ने उन्हें अपने पति के रूप में चुन लिया।
देवर्षि को इस बात का गुस्सा हुआ कि राजकुमारी ने उनकी बजाए किसी ओर को अपना वर चुना। यह देखकर शिवगण नारदजी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए। जब उन्होंने अपना मुख देखा तो बहुत क्रोधित हुए। नारद जी ने शिवगणों को उसी समय राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। इसके बाद वह भगवान नारयण के पास पहुंचे और उन्हें बुरा-भला कहने लग गए। माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि को श्राप दिया कि- 'जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा। उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे।'
भगवान विष्णु ने कहा- ऐसा ही हो और नारद जी को माया से मुक्त कर दिया। तब देवर्षि को अपने कटु वचन और व्यवहार पर बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी।
भगवान ने कहा कि ये सब मेरी ही इच्छा से हुआ है तुम शोक मत करो। तभी वहां शिवगण आए और नारद जी से क्षमा मांगी। देवर्षि ने कहा- 'तुम दोनों राक्षस योनी में रहकर सारे विश्व को जीत लोगे, और तब श्रीहरि मनुष्य रूप में तुम्हारा वध करेंगे तभी तुम्हारा कल्याण होगा।