Muni Shri Tarun Sagar: मृत जानवरों के अंगों को खाने वाले पेट को श्मशान बनाते हैं
punjabkesari.in Friday, Dec 09, 2022 - 10:41 AM (IST)
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भावों का खेल
संसार या हो मोक्ष, सब भावों का खेल है। शरीर में परिवर्तन भावों से आता है। मनुष्य की आंखें मनुष्य के भावों की दर्शाती हैं। आंखों में कभी प्रेम दिखता है तो कभी घृणा। कभी भृकुटि तन जाती है तो कभी आंखों में लाल डोरे पड़ जाते हैं। स्वर्ग-नरक सब भावों का खेल है।
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हार कर जीतना है
मैं बदला लेने नहीं, मैं तुम्हें बदल देने के लिए आया हूं। मुझे ईर्ष्या नहीं, ईश्वर चाहिए। मैं प्रसिद्धि के लिए अपनी विशुद्धि नहीं खोना चाहता। मैं सर्वयोगी बनने के लिए योगी बना हूं। मेरी भावना है, जो मेरे साथ एक मील चलेगा मैं उसके साथ मंजिल तक जाना चाहता हूं।
सात्विक हो भोजन
मैं हर काम करूं यह जरूरी नहीं, मैं हर किसी के काम आऊं, ऐसी मेरी भावना है। मैं जीतकर हारना नहीं, हारकर जीतना चाहता हूं।
भोजन का प्रत्येक ग्रास ब्रह्मांड से आया हुआ दूत है। आपके मुख का ग्रास शाकाहारी होना चाहिए, मांसाहारी नहीं। जो लोग अपने पेट में मृत जानवरों के अंगों को डालते हैं, वे अपने पेट को श्मशान भूमि बनाते हैं। पेट देववेदी है, वहां सिर्फ पूजा का पवित्र अर्घ्य चढ़ता है, मांस-मंदिरा नहीं।