कड़वे प्रवचन...लेकिन सच्चे बोल: गले में सोने की चेन है, फिर भी दिमाग बेचैन है
punjabkesari.in Tuesday, May 18, 2021 - 09:15 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
प्रार्थना और प्रयत्न
मेरा कोई ‘दावा’ नहीं है कि मैं दुनिया को सुधार दूंगा। मगर यह ‘वादा’ जरूर है कि मैं अपनी तरफ से दुनिया को सच्चा मार्ग दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखूंगा। मेरी मान्यता है कि अंधेरा चाहे कितना ही गहरा क्यों न हो, अगर आपके हाथ में दीया है तो फिर अंधेरे से डरने की जरूरत नहीं है। आसमान में भी सुराख हो सकता है, एक पत्थर तो उछाल कर देखो। दिल से की गई प्रार्थनाएं अवश्य ही फलीभूत होती हैं, पर प्रार्थना के साथ प्रयत्न भी तो जरूरी है न।
धर्म और विज्ञान
धर्म और विज्ञान संपूरक हैं। मनुष्य को गति विज्ञान से मिलती है जबकि धर्म उसे दिशा प्रदान करता है। धर्म के पास दिशा है पर गति नहीं, जबकि विज्ञान के पास गति है परन्तु दिशा नहीं। जीवन में गति न हो तो जड़ता आ जाएगी और दिशा के अभाव में गतिशीलता जीवन में संकट कर देगी। अत: जीवन में धर्म और विज्ञान का संतुलित समन्वय आज की सर्वोपरि आवश्यकता है।
एक मिनट का गुस्सा
सावधान! आपका एक मिनट का गुस्सा पूरा भविष्य बिगाड़ सकता है। क्रोध में कोई आग बने तो आप पानी बन जाइए। वह थोड़ी देर फूं-फां करके अपने आप ढीला पड़ जाएगा। क्रोध अपेक्षा की उपेक्षा होने पर आता है। किसी से अपेक्षा मत रखिए। अगर पत्नी कभी गुस्से में आकर पति को ‘जानवर’ कह दे तो बुरा नहीं मानना बल्कि उससे कहना तू मेरी ‘जान’ और मैं तेरा ‘वर’। दोनों मिल कर बन गए ‘जानवर’।
थर्मस की तरह
आज का आदमी थर्मस की तरह हो गया है। थर्मस बाहर से ठंडा और भीतर से गर्म होता है। आदमी के पास सब तरह की सुविधाएं हैं। बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलैंस हैं। बीवी-बच्चे हैं। गले में सोने की चेन है, फिर भी दिमाग बेचैन है। वह रहता ए.सी. में है पर उसके दिमाग में हीटर लगा हुआ है।
जिंदगी का रिमोट
आप टी.वी. देखते हैं तो रिमोट अपने पास रखते हैं। जिंदगी का रिमोट भी अपने पास रखिए। अभी हमारे जीवन का रिमोट दूसरों के हाथों में है। वह जब चाहे नाचने, हंसाने, रुलाने लगता है। अगर किसी ने गाली दी और हम भड़क गए, किसी ने तारीफ की और हम लुढ़क गए, किसी ने तारीफ की ओर हम लुढ़क गए तो रिमोट उसी के हाथ में हुआ न। अपने सुख-दुख का रिमोट प्रभु के हाथ में दे दो या अपने पास रखो तभी सुखी रह सकते हैं।
- मुनि श्री तरुण सागर जी