Motivational Concept: अन्तहीन तृष्णा का कोई पार नहीं
punjabkesari.in Monday, Oct 03, 2022 - 11:16 AM (IST)

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अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान, बैबीलोनिया, फारस आदि को जीतता हुआ सिकन्दर अपनी विराट सेना के साथ भारत पर चढ़ आया। भारत के जिस राज्य पर आक्रमण होने वाला था, वहां के राजा को जैसे ही पता लगा, तुरन्त वह लड़ने से पूर्व सिकन्दर से मिलने गए। वह सिकन्दर के पास पहुंचे और बोले कि मैं आपसे संधि करना चाहता हूं, आप मुख्य अमात्यों के साथ मेरे यहां भोजन के लिए पधारें।
सिकन्दर ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया और अपनी सुरक्षा का पूर्ण बंदोबस्त कर मुख्य अमात्यों के साथ राजमहल में पहुंचा और योग्य स्थान पर जाकर बैठ गया। सामने की मेज पर थाल सजाकर रखे थे, जो बढ़िया रेशम के रूमाल से ढके थे। ज्यों ही सिकन्दर ने थाल पर से रूमाल हटाया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, उसमें भोजन के स्थान पर हीरे, पन्ने, माणक, मोती आदि जवाहरात थे।
सिकन्दर-यह क्या मजाक है?
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राजा-यह मजाक नहीं है किन्तु आपकी भूख के अनुरूप ही भोजन परोसा गया है। पेट तो अन्न से भरता है, उसकी कमी आपके देश मैसिडोनिया में भी नहीं थी, पर आपकी भूख हीरे, पन्ने आदि को प्राप्त करने की थी, इसीलिए आप एक देश से दूसरे देश पर आक्रमण कर वहां के जन-जीवन को बर्बाद कर रहे हैं। आपकी अन्तहीन तृष्णा का कोई पार नहीं है।
सिकन्दर इस प्रश्र का उत्तर न दे सका। उसे अपने कृत्यों पर ग्लानि हुई और वह पुन: अपने देश लौट गया।