Motivational Concept: लालच से बचना ही श्रेयस्कर
punjabkesari.in Wednesday, Jun 29, 2022 - 10:20 AM (IST)

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प्राचीन काल में संजय नामक राजा थे। उनकी एक ही कन्या थी। उन्हें पुत्र की बड़ी चाह थी। एक बार देवॢष नारद उनके राज्य में पहुंचे और राजा के कहने पर उन्होंने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। राजा ने मांगा, मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो रूपवान तो हो ही उसका मल-मूत्र, थूक-कफ सभी सोने के हों। मांग अप्राकृतिक थी, फिर भी देवॢष ने तथास्तु कह दिया। कुछ समय बाद राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र का नाम सुवर्णष्ठीवी रखा गया। वरदान के अनुरूप पुत्र का मल-मूत्र, थूक-कफ सभी सोने का था। देखते ही देखते राजा ने पूरा राजमहल सोने का बनवा लिया। राजा के विलक्षण पुत्र की चर्चा पूरे राज्य में फैली और लोग उसे देखने आने लगे।
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डाकुओं की भी पूरे घटनाक्रम पर दृष्टि थी। वे लगातार राजकुमार का अपहरण करने की योजना बना रहे थे। एक दिन डाकू राजमहल से राजकुमार को उठाकर ले गए। जंगल में डाकुओं का आपस में विवाद हो गया। सभी राजकुमार पर अपना नियंत्रण चाहते थे। इधर, राजसेना राजकुमार की खोज में जंगल तक पहुंच गई थी। डाकुओं को कोई उपाय न सूझा और डाकुओं ने उसकी हत्या कर दी और जो भी सोना हाथ लगा, उसे बांटकर फरार हो गए।
सेना जंगल पहुंची तो देखा राजकुमार का शव पड़ा है। सूचना मिलने पर राजा पहुंचा और पुत्र का शव देखकर विलाप करने लगा। तभी वहां पहुंचे ऋषि ने कहा कि अब कुछ नहीं हो सकता। तुमने लोभ में उसमें अप्राकृतिक विधान जोड़ा और ऐसा विलक्षण पुत्र पाया जिसकी रक्षा कठिन हो गई। परिणामस्वरूप पुत्र नहीं बच पाया। लोभ ठीक है किंतु इस तरह उसमें अति हो तो अंत में विनाश और विलाप ही छोड़ जाता है। इसलिए लोभ की अति से बचें।
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