Mahatma Gandhi Death Anniversary: सत्य और अहिंसा के पुजारी विश्व बंधु बापू को विनम्र श्रद्धाजंलि

punjabkesari.in Tuesday, Jan 30, 2024 - 02:17 PM (IST)

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Martyr's Day 2024: गांधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ था। उस समय उनके पिता श्री करमचंद गांधी पोरबंदर में एक दीवान के पद पर कार्यरत थे। गांधी जी के पिता अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पूज्य माता पुतली बाई भी एक आदर्श महिला के रूप में विख्यात थीं। 

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बापू की प्रारम्भिक शिक्षा तत्कालीन शिक्षा पद्धति के रूप में ही हुई। उनका विवाह 13 वर्ष की उम्र में ही कस्तूरबा के साथ हुआ, जब वह पाठशाला में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। इसी समय हमारे विश्वबंधु बापू ने श्रवण कुमार की भक्ति भावना से ओतप्रोत ‘श्रवण पितृ भक्ति’ नाटक पढ़ा और ‘सत्य हरीशचंद्र’ नाटक देखा। इनका प्रभाव उनके मानस पटल पर छा गया जिसका असर जीवनपर्यंत रहा। 
उनके जीवन में अनेक बाधाएं आईं लेकिन गांधी जी ने सबको झेलते हुए अपना अध्ययन जारी रखा और विदेश जाकर बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त करने में सफल हुए। गांधी जी ने बैरिस्टरी पास करने के बाद भारत वापस आकर सर्वप्रथम बंबई (मुम्बई) में वकालत करनी शुरू की। 

गांधी जी संकोची स्वभाव और दांव-पेच तथा झूठ को प्राथमिकता न देने वाले बैरिस्टर थे। वह सत्य के पुजारी थे, इसलिए मुम्बई में उनकी बैरिस्टरी न जम सकी। इसी क्रम में एक बार गांधी जी को ‘दादा अब्दुल्ला एंड कम्पनी’ की ओर से एक मुकद्दमे की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। उस समय अफ्रीका में रंगभेद नीति लागू थी। काले-गोरे का विवाद जारी था। भारतीयों को सर्वत्र सभी कामों में अपमानित किया जाता था। इन सबको देख कर गांधी जी की आत्मा को ठेस पहुंची।

उन्होंने इन सारी बातों का विरोध करने का मन बनाया। यहीं उन्होंने सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका में भारतवासियों को नागरिक अधिकार दिलाने के लिए बीड़ा उठाया और सत्याग्रह का श्रीगणेश किया।

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विश्वबंधु बापू में सेवाभाव कूट-कूट कर भरा था। वह शत्रुओं की भी सेवा तथा सहायता नि:संकोच करते थे। सन् 1899 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध छिड़ने वाले बोअर युद्ध में गांधी जी ने घायलों की सेवा की और अपनी जान हथेली पर रख कर वह इसके लिए लड़ाई के मैदान में भी गए। 1896 और 1897 में भारत में जब अकाल पड़ा, तब उन्होंने अकाल पीड़ितों की सहायता के लिए दक्षिण अफ्रीका में चंदा एकत्र किया। 

भारत लौटने के बाद उन्होंने देश की आजादी का बिगुल फूंक दिया। 1942 में उन्होंने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। सभी नेताओं को जेल में डाल दिया गया लेकिन इससे सारे देश में क्रांति की ज्वाला भभक उठी। सारा देश हुंकार कर उठा। आखिर विवश होकर 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा की और विश्व बंधु बापू का सपना साकार हुआ।

पूज्य बापू के आह्वान से भारत सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए आजाद हुआ लेकिन जब हमारे बापू 30 जनवरी, 1948 को बिड़ला भवन में प्रार्थना हेतु जा रहे थे, उन पर गोली चला दी गई। उनके क्षणभंगुर भौतिक शरीर को तो छलनी कर दिया गया, परंतु उनकी आत्मा और उनके विचार अमर हैं।  

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Content Writer

Niyati Bhandari

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