मदुरै में गांधी जी बने थे फकीर, अपनाया ये Dress code
punjabkesari.in Monday, May 06, 2024 - 09:27 AM (IST)
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22 सितम्बर, 1921 को गांधी जी ने अपनी पोशाक बदलने का एक महत्वपूर्ण फैसला लिया था। विस्तृत गुजराती पोशाक में से, उन्होंने एक साधारण धोती और शॉल का चयन किया। यह युगांतकारी निर्णय गांधीजी ने मदुरै में लिया था जब उन्होंने तय किया था कि उन्हें भारत के गरीब लोगों के लिए और उनके साथ काम करना है। यदि वे उनसे अलग कपड़े पहनते हैं तो कैसे पहचान बना सकते हैं।
यहां तक कि अपनी विदेश यात्रा पर भी वह अपने अंतिम क्षण तक इस ‘ड्रैस कोड’ पर कायम रहे। उन्हें अपने निर्णय पर कभी पछतावा नहीं हुआ जैसा कि वह लिखते हैं, ‘‘मैंने अपने जीवन में जो भी बदलाव किए हैं वे महत्वपूर्ण अवसरों से प्रभावित हुए हैं और इतने गहन विचार-विमर्श के बाद इन्हें अपनाया गया है कि मुझे शायद ही कभी इन पर पछताना पड़ा हो। मदुरै (तमिलनाडु) में मैंने अपनी पोशाक में आमूल-चूल परिवर्तन किया।’’
‘राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय’ के निदेशक ए. अन्नामलाई और संयुक्त निदेशक उत्तम सिन्हा के अनुसार गांधी जी को चिंतित करने वाली कुछ बातें थीं। चम्पारण सत्याग्रह के दिनों में उन्होंने अपने आसपास जो गरीबी देखी थी, उससे वह स्तब्ध थे, दक्षिण भारत की इस यात्रा ने उनके लिए इसे और अधिक स्पष्ट कर दिया। गरीब किसानों की स्थिति को देखकर, लंगोटी पहनकर खेतों में काम करना और भोजन तथा आजीविका के लिए उनके संघर्ष ने उन्हें परेशान कर दिया। इससे पूर्व दो मौकों पर, उन्होंने आम आदमी के कपड़े पहनने के बारे में सोचा था, लेकिन आखिरकार मदुरै में उन्होंने एक गरीब किसान की पोशाक अपनाने का फैसला किया। जैसे ही वह मदुरै से अपनी यात्रा पर आगे बढ़े उन्हें लोगों का अभिवादन स्वीकार करने के लिए रास्ते में रुकने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह स्थान जहां गांधी जी पहली बार अपनी नई लंगोटी पोशाक में सार्वजनिक रूप से सामने आए थे, अब ‘गांधी पोर्टल’ (खुला मैदान) कहा जाता है।
स्वदेशी का मतलब ही सब कुछ है
मदुरै में ‘कामराजार रोड’ पर अलंकार थिएटर के ठीक सामने गांधी जी की एक विनम्र प्रतिमा खड़ी है। हालांकि, गांधी जी नहीं चाहते थे कि हर कई उनकी सादगीपूर्ण पोशाक शैली का अनुसरण करे। उन्होंने ‘नवजीवन’ में लिखा, ‘‘मैं नहीं चाहता कि मेरे सहकर्मी या पाठक लंगोटी अपनाएं, लेकिन मैं यह चाहता हूं कि वे विदेशी कपड़ों का बहिष्कार का मतलब भली-भांति समझ लें और इसका बहिष्कार करने तथा खादी बनाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें। मैं चाहता हूं कि वे समझें कि स्वदेशी का मतलब ही सब कुछ है।’’
पोशाक के लिए किया आलोचना का सामना
पोशाक में इस तरह के भारी बदलाव के कारण उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और कुछ लोगों की भौंहें भी तन गईं।
एक दिलचस्प किस्सा है किंग जॉर्ज पंचम द्वारा ‘गोलमेज सम्मेलन’ में गांधी जी और सभी भारतीय प्रतिनिधियों को बकिंघम पैलेस में दोपहर की चाय के लिए अनिच्छा से आमंत्रित किया जाना। गांधी जी की गरीब आदमी की पोशाक सीधे तौर पर सरकारी शिष्टाचार के विरुद्ध थी, लेकिन गांधी भी पहले से घोषणा करके बराबरी से अड़े हुए थे कि वह राजा से मिलने के लिए भी दोबारा कपड़े नहीं पहनेंगे। उनका रुख सीधा था कि ब्रिटेन के कारण भारतीय गरीब अभी भी नंगे हैं। बाद में, जब पूछा गया कि क्या उन्होंने राजा से मिलने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं पहने थे, तो गांधी जी ने प्रसिद्ध टिप्पणी की - ‘‘राजा ने हम दोनों के लिए पर्याप्त कपड़े पहने थे।’’
इससे बेहतर जवाब नहीं हो सकता था।