इस स्तोत्र का पाठ करते हुए 16 दिन को महालक्ष्मी व्रत का समापन

punjabkesari.in Wednesday, Sep 09, 2020 - 07:48 PM (IST)

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जैसे कि अपनी वैबसाइट के माध्यम से हम आपकोे महालक्ष्मी प्रारंभ दिन से लेकर 10 सितंबर को होने वाले इसके समापन तक के जुड़ी लगभग जानकारी दे चुके हैं। इसी बीच अब हम आपको बताने जा रहे हैं श्री महालक्ष्मी दे्वी से जड़े ऐसे स्तोत्र के बारे में, जिसका जप करना महालक्ष्मी व्रत रखने वाले तथा इनकी पूजा करने वाले प्रत्येक जातक के लिए आवश्यक होता है। कहा जाता है जो व्यक्ति भाद्रपद की अष्टमी तिथि से लेकर अश्विनी मास की अष्टमी तिथि तक इनके व्रत करता है उसे पूरे 16 दिन तो इस स्तुति का निरंतर का पाठ अवश्य करना चाहिए। परंतु किसी कारण वश अगर ऐसा कर पाना संभव न हुआ हो तो ऐसे में व्यक्ति को इसके आखिरी दिन यानि समापन के दिन निम्न स्तोत्र का पाठ ज़रूर करना चाहिए। 
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसका पाठ करने धन-धान्य तथा ऐश्वर्य की मां, देवी लक्ष्मी सदा अपने भक्तों के लिए भंडार भरती हैं। साथ ही साथ जीवन में घर में परिवार के लोगों को अपने जीवन में तरक्की प्राप्त होती है। यहां पढ़े महालक्ष्मी व्रत के समापन के दिन किया जाने वाला अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का संपूर्ण पाठ-

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहोदरि हेममये, 
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि, मंजुल भाषिणी वेदनुते। 
पंकजवासिनी देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते, 
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, आद्य लक्ष्मी परिपालय माम्।।1।। 

अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी, वैदिक रूपिणि वेदमये, 
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि, मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।
 मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते, 
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।2।। 

जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि, मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये, 
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते। 
भवभयहारिणी पापविमोचिनी, साधु जनाश्रित पादयुते, 
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।3।। 
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जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये, 
रथगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते। 
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणी पादयुते, 
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम्।।4।। 

अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि, राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
 गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते। 
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते, 
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम्।।5।। 

जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये, 
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर, भूषित वसित वाद्यनुते। 
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शंकरदेशिक मान्यपदे, 
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विजयलक्ष्मी परिपालय माम्।।6।। 

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प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये,
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे।
 नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते, 
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्।।7।। 

धिमधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि, दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये, 
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम, शंख निनाद सुवाद्यनुते। 
वेद पुराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते, 
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम्।।8।। 

अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि। 
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी।। 
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:। 
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्।। 

।।इति श्रीअष्टलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।


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Jyoti

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