यहां भोलेनाथ से रूठ कर आई थी मां शैलपुत्री, दर्शनों से दूर होते हैं वैवाहिक कष्ट

punjabkesari.in Saturday, Jan 28, 2017 - 04:08 PM (IST)

नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन किया जाता है। मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने पर इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। काशी नगरी वाराणसी के अलईपुर में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर स्थित है। माना जाता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री के दर्शनों से व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इसके साथ ही वैवाहिक समस्याएं भी दूर होती हैं। वैसे तो मंदिर में प्रतिदिन बहुत सारे भक्त आते हैं लेकिन नवरात्र के पहले दिन यहां सैकड़ों भक्त माता के दर्शनों हेतु आते हैं।
 

वैवाहिक कष्ट होते हैं दूर
मंदिर में प्रतिदिन मां की पूजा-अर्चना होती है लेकिन नवरात्रों में पूजा का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि नवरात्र में मां के दर्शनों से वैवाहिक कष्ट दूर हो जाते हैं। यहां नवरात्रों के पहले ही दिन भक्त मां के दर्शनों के लिए लाईन में लग जाते हैं।                          
 

भोलेनाथ से रूठ कर कैलाश से काशी आई थी माता 
मां शैलपुत्री के इस मंदिर से संबंधित एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि मां पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रुप में जन्म लिया था अौर शैलपुत्री कहलाई। एक बार माता भोलेनाथ से रुष्ट होकर कैलाश से काशी आ गई। भोलेनाथ उन्हें मनाने हेतु आए तो माता ने उन्हें कहा कि उन्हें ये स्थान बहुत प्रिय लग रहा है। वह वहां से जाना नहीं चाहती। उसके बाद से माता वहीं पर विराजमान हो गई। यहां माता के दर्शनों के लिए आने वाला भक्त मां के दिव्य स्वरूप के रंग में रंग जाता है। 
 

तीन बार होती है आरती
मंदिर में माता की दिन में तीन बार आरती होती है। माता को चढ़ावे में नारियल के साथ सुहाग का समान चढ़ाया जाता है। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। माता शैलपुत्री को मां पार्वती का स्वरूप माना जाता है। माना जाता है कि माता के इस स्वरूप ने भोलेनाथ की कठोर तपस्या की थी। माता के इस स्वरूप के दर्शनों से सभी वैवाहिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। 
 


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