रिश्तों को निभाने में क्या आप भी हो रहे हैं नाकाम, तो अपनाएं श्रीकृष्ण की ये Policy

punjabkesari.in Saturday, Oct 12, 2019 - 01:28 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
रिश्तें, हर किसी के जीवन में इनका अहम रोल होता है। इनके बिना जिंदगी के रंग अधूरे लगने लगते हैं। इसलिए हर किसी की यही चाह होती है कि उसके संबंधित सभी रिश्ते उसके मरते दम तक उसका साथ निभाएं। मगर केवल ऐसी कामना रखने से रिश्तों को मज़बूत नहीं किया जाता। इन्हें निभाने के लिए सूझ-बूझ का होना भी बहुत ज़रूरी होता है। परंतु आज कल के इस मार्डन ज़माने में लोग रिश्तों की असल डोर को टूटती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण भी व्यक्ति ही है। जी हां, इंसान के भीतर की खामियां ही उसके रिश्तों में कड़वाहट पैदा करती हैं।
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तो क्या आप भी अपनी लाइफ के रिश्तों को सही से निभाने में हर बार नाकाम हो रहे हैं और डिप्रेश्न के शिकार हो रहे हैं। तो आपको बता दें लीलाधर श्री कृष्ण आपकी इसमें मदद कर सकते हैं। जी हां, शास्त्रों में कहा गया है कि अगर किसी को अपने जीवन में रिश्तों की अहमियत के साथ उन्हें निभाने की कला सीखनी हो तो श्री कृष्ण से बड़ा कोई गुरू नहीं है। क्योंकि भगवान विष्णु ने अपने इस अवतार के दौरान हर रिश्ते को बड़ी ही ईमानदारी व समझदारी से निभाया। आइए सीखते हैं इनसे रिश्तों को मैनेज करने के कुछ सूत्र-

दोस्ती
ये बात किसी से छिपी नहीं है कि भगवान श्रीकृष्ण के लिए अपने परम मित्र सुदामा की दोस्ती के कितनी खास थी। इनके दोस्ती के बीच कभी भी ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, छोटे-बड़े का भेद नहीं आया था। बल्कि इनकी मित्रता ने इन सबको समाप्त कर दोस्ती के अनोखे ही रिश्ते की बुनियाद कायम की थी। इसीलिए आज के समय में इनकी दोस्ती की मिसालें दी जाती है। तो अगर आप भी दोस्ती निभाना चाहते हैं तो श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को अपन ज़हन में ज़रूर रखें।
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मां-बाप
मां बाप का रिश्ता जिंदगी का सबसे अहम रिश्ता होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण का लालन-पालन नंदबाबा और यशोदा मैया के आंगन में हुआ था परन्तु भगवान श्री कृष्ण ने देवकी और वासुदेव जी को भी अपने जीवन में उतना ही महत्त्व दिया और दोनों ही जगह एक आदर्श बेटा बनकर अपना कर्तव्य निभाया। इस तरह कृष्ण की जीवनी से हमें माता-पिता के रिश्ते की अहमियत पता चलती है।
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गुरू
भगवान श्री कृष्ण से हमें ये सीख मिलती है कि श्री कृष्ण अपने जीवन में जिन भी संतों से रूबरू हुए उन्होंने उनका हमेशा आदर-सत्कार किया। स्वंय भगवान होने के बावजूद भी श्री कृष्ण के मन में अपने गुरुओं के लिए अपार प्रेम था। शास्त्रों के वर्णन मुताबिक इन्होंने ने सादींपन मुनि के आश्रम में जाकर एक साधारण शिष्य की तरह 64 कलाओं की शिक्षा ग्रहण की थी।
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प्रेम
ग्रंथों में श्री कृष्ण की हज़ारों गोपियां के बारे में उल्लेख किया गया है मगर असीम प्रेम की बात करें तो वो उनका राधा के प्रति सबसे गहरा था। श्री कृष्ण राधा व गोपियों के साथ मिलकर रास लीला रचाते थे परन्तु श्री कृष्ण इन सभी से प्यार के साथ-साथ उनका सम्मान भी करते थे। इस लिए कहा जाता है आज कल के प्रेमियों को श्री कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी से सच्चे प्यार के प्रति सम्मान की सीख लेनी चाहिए।
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Jyoti

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