Shri krishna: अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, दर पे सुदामा गरीब आ गया है

punjabkesari.in Monday, Apr 27, 2020 - 11:07 AM (IST)

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Shri krishna: सुदामा नामक एक ब्राह्मण श्री कृष्ण के परम मित्र थे। उन्होंने श्री कृष्ण के साथ गुरुकुल में शिक्षा पाई थी। वह गृहस्थ होने पर भी संग्रह-परिग्रह से दूर रहते हुए भाग्य के अनुसार जो कुछ भी मिल जाता, उसी में संतुष्ट रहते थे। भगवान की उपासना और भिक्षाटन, यही उनकी दिनचर्या थी। उनकी पत्नी परम पतिव्रता और अपने पति के साथ हर अवस्था में संतुष्ट रहने वाली थी।

PunjabKesari krishna sudama story in hindi

एक दिन दुखिनी पतिव्रता भूख के मारे कांपती हुई अपने पति सुदामा जी के पास गई और बोली, ‘‘भगवन! साक्षात् लक्ष्मीपति भगवान श्री कृष्ण आपके सखा हैं। वह शरणागत वत्सल और ब्राह्मणों के परम भक्त हैं। आप उनके पास जाइए। जब वह जानेंगे कि आप अन्न के बिना दुखी हो रहे हैं, तो वह आपको बहुत सा धन देंगे। वह इस समय द्वारिका में निवास कर रहे हैं। आप वहां अवश्य जाइए, मुझे विश्वास है कि वह दीनानाथ आपके बिना कहे ही हमारी दरिद्रता दूर कर देंगे।’’

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जब सुदामा की पत्नी ने उनसे कई बार द्वारिका जाने की प्रार्थना की, तब उन्होंने सोचा कि, ‘‘धन की तो कोई बात नहीं है परंतु भगवान श्री कृष्ण का दर्शन हो जाएगा, इसी बहाने जीवन का यह सर्वोत्तम लाभ प्राप्त होगा।’’

ऐसा सोचकर सुदामा ने द्वारिका जाने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘कल्याणी! घर में कोई वस्तु श्री कृष्ण को भेंट देने योग्य हो तो उसे दो। ब्राह्मणी ने पास-पड़ोस के ब्राह्मणों के घर से चार मुट्ठी चिउड़े मांग कर एक कपड़े में बांध दिए और भगवान श्री कृष्ण को भेंट देने के लिए अपने पतिदेव को दे दिए। ब्राह्मण देवता उन चिउड़ों को लेकर द्वारिका के लिए चल पड़े। वह मार्ग में यही सोचते जाते थे कि ‘‘मुझे भगवान श्री कृष्ण के दर्शन किस प्रकार होंगे?’’

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द्वारिका पहुंचने पर सुदामा अन्य ब्राह्मणों के साथ पूछते हुए श्री कृष्ण के महल में जा पहुंचे। सब लोग उनकी दीन-हीन अवस्था देखकर उन पर हंस रहे थे। उन्होंने द्वारपाल से कहा, ‘‘भैया! श्री कृष्ण से कह दो कि उनसे मिलने के लिए उनका बचपन का सखा सुदामा आया है।’’

पहले तो द्वारपाल को विश्वास ही नहीं हुआ लेकिन बाद में उसने जाकर भगवान से कहा, ‘‘प्रभो! दरवाजे पर एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण खड़ा है। उसके तन पर चिथड़े झूल रहे हैं, पांवों में बेवाइयां फटी हैं। उसकी दरिद्रता देखकर द्वारिका की धरती भी आश्चर्यचकित है। वह अपना नाम सुदामा बताता है, कहता है कि ‘‘मैं श्री कृष्ण का मित्र हूं।’’

सुदामा नाम सुनते ही श्री कृष्ण अपने पलंग से कूद पड़े और नंगे पांव दौड़ते हुए दरवाजे तक जा पहुंचे। उन्होंने सुदामा को अपने अंकपाश में समेट लिया और कहा, ‘‘मित्र! तुम आए तो लेकिन बहुत कष्ट भोगने के बाद आए। द्वारिका में तुम्हारा स्वागत है।’’

भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा को ले जाकर उन्हें अपने पलंग पर बिठाया। उनके पांवों को धोकर चरणामृत लिया तथा उनको स्नान करवाकर रेशमी वस्त्र पहनने के लिए दिया। रुक्मिणी जी स्वयं उन्हें पंखा झलने लगीं और भगवान ने उन्हें नाना प्रकार का स्वादिष्ट भोजन करने के लिए दिया। बहुत समय तक आपस में बचपन की बातें करने के बाद श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘मित्र! भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा है।’’

पहले तो सुदामा संकोच करते रहे लेकिन अंत में श्री कृष्ण ने चिउड़े निकाल ही लिए। भगवान ने उन तीन मुट्ठी चिउड़ों के बदले सुदामा को तीनों लोकों को सम्पत्ति दे डाली। धन्य है भगवान श्री कृष्ण की मित्रवत्सलता!

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Niyati Bhandari

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