Kartar Singh Sarabha birth anniversary: 19 वर्ष की आयु में शहादत देने वाले ‘करतार सिंह सराभा’ को आदर्श मानते थे भगत सिंह

punjabkesari.in Wednesday, May 24, 2023 - 07:50 AM (IST)

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Kartar Singh Sarabha birth anniversary: देश को अंग्रेजों से स्वतंत्र करवाने के लिए हजारों नौजवानों ने संघर्ष किया और हंसते-हंसते मौत को गले लगा लिया। पंजाब का ऐसा ही शेर था करतार सिंह सराभा। इनका जन्म लुधियाना (पंजाब) के सराभा गांव में 24 मई, 1896 को माता साहिब कौर तथा पिता मंगल सिंह के घर हुआ। पिता का बचपन में निधन होने के कारण करतार सिंह और इनकी छोटी बहन धन्न कौर का पालन-पोषण दादा बदन सिंह ने किया।  

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11वीं की परीक्षा पास करने के बाद परिवार ने उच्च शिक्षा के लिए उन्हें विदेश भेजने का निर्णय लिया और साढ़े 15 वर्ष की आयु में वह अमेरिका पहुंच गए। अंग्रेजों द्वारा भारतीय आप्रवासियों के साथ अमेरिका में किए जा रहे दुर्व्यवहार को देख कर इनके मन में देशभक्ति की भावनाएं पनपने लगीं। स्वतंत्रता के लिए 15 जुलाई, 1913 को लाला हरदयाल, सोहन सिंह भकना, बाबा ज्वाला सिंह, संतोख सिंह और संत बाबा विशाखा सिंह दादहर जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा कैलिफोर्निया में आजादी के लिए गदर पार्टी का गठन किया गया। करतार सिंह सराभा पार्टी के सक्रिय सदस्य बनें। वह सोहन सिंह भकना से बहुत प्रेरित थे जिन्होंने भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह किया था। वह करतार सिंह को ‘बाबा गरनल’ कहते थे।

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करतार सिंह ने मूल अमेरिकियों से बंदूक चलाना और विस्फोटक बनाना तथा हवाई जहाज उड़ाना सीखा। गदर पार्टी ने 1 नवम्बर, 1913 को ‘द गदर’ नामक अखबार पंजाबी, हिंदी, उर्दू, बंगाली, गुजराती और पश्तो भाषाओं में प्रकाशित करना शुरू किया। करतार सिंह सराभा ने अखबार के गुरुमुखी संस्करण के प्रकाशन में सक्रिय रूप से भाग लिया तथा इसके लिए कई लेख और देशभक्ति की कविताएं लिखीं। अखबार का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के खिलाफ दुनिया भर में बसे भारतीयों में देशभक्ति की भावना जगाना था।

1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेज शामिल हो गए तो 5 अगस्त, 1914 को गदर पार्टी के नेताओं ने ‘युद्ध की घोषणा का निर्णय’ नामक लेख प्रकाशित कर अंग्रेजों के खिलाफ संदेश दिया। लेख की हजारों प्रतियां सैनिक छावनियों, गांवों और कस्बों में बांटी गईं। अक्टूबर 1914 में करतार सिंह, सत्येन सेन और विष्णु गणेश पिंगले गदर पार्टी के सदस्यों के साथ कोलंबो के रास्ते कलकत्ता पहुंच गए।

करतार सिंह सराभा ने स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस से भी मुलाकात की और मियां मीर तथा फिरोजपुर की छावनियों पर कब्जा कर, अम्बाला तथा दिल्ली में सशस्त्र विद्रोह करने का निर्णय किया। इसके लिए लगभग 8000 भारतीय अमेरिका और कनाडा की सुख-सुविधाएं छोड़ समुद्री जहाजों से भारत पहुंचे। गदर पार्टी के एक पुलिसकर्मी मुखबिर कृपाल सिंह ने लोभवश ब्रिटिश पुलिस को विद्रोह की जानकारी दे दी जिसके फलस्वरूप 19 फरवरी को बड़ी संख्या में पार्टी के क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे विद्रोह विफल हो गया।

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करतार सिंह सराभा को हरनाम सिंह टुंडा लाट और जगत सिंह सहित पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ अफगानिस्तान जाने का आदेश दिया गया था। 2 मार्च, 1915 को करतार सिंह सराभा अपने दो दोस्तों के साथ भारत लौट आए क्योंकि उनकी अंतरात्मा अपने साथियों को अकेला छोड़ने के लिए नहीं मानी। वापसी के तुरंत बाद वह सरगोधा में चक नंबर 5 पर गए और विद्रोह का प्रचार करना शुरू कर दिया। इसके लिए उन्हें हरनाम सिंह टुंडा लाट और जगत सिंह को गिरफ्तार करके लाहौर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया।

अदालत में सुनवाई के दौरान करतार सिंह सराभा ने विद्रोह के आरोपों को स्वीकार किया। युवा भारतीय क्रांतिकारी का साहस देखकर न्यायाधीश हैरान रह गए। वह इनके मासूम चेहरे को देखते हुए कठोर सजा नहीं देना चाहते थे इसलिए इन्हें बयान बदलने को कहा लेकिन राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत करतार सिंह अपने बयान पर अडिग रहे। अंतत: इन्हें फांसी की सजा सुना दी गई।

16 नवम्बर (कहीं 17 नवम्बर), 1915 को करतार सिंह सराभा को उनके 6 अन्य साथियों बख्शीश सिंह, सुरेश सिंह व सुरण, हरनाम सिंह, जगत सिंह तथा विष्णु गणेश पिंगले के साथ लाहौर जेल में फांसी देकर शहीद कर दिया गया। लाहौर सेंट्रल जेल में कैद के दौरान इनका वजन 14 पाउंड बढ़ गया था जो फांसी के प्रति उनकी निर्भीकता को दर्शाता है। वह शहीद भगत सिंह के भी आदर्श थे। भगत सिंह उनका चित्र हमेशा अपने पास रखते थे।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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