Yatra:- कन्याकुमारी में गिरी थी सती की रीढ़ की हड्डी, पढ़ें रोचक इतिहास

punjabkesari.in Friday, Jan 15, 2021 - 09:37 AM (IST)

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Kanyakumari Temple in Kanyakumari: कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक है।’ यह नारा नहीं बल्कि वास्तविकता है जिसका तीव्रता से आभास तब होता है जब हम भारत के दक्षिणी छोर पर देवी कन्या कुमारी के दर्शन करते हैं। अनायास ही उत्तर में हिमालय की पर्वत शृंखलाओं में बसी वैष्णव माता का ध्यान आता है। एक ओर समुद्र तट वासिनी मां तो दूसरी ओर बर्फीली पहाड़ियों पर बसी मां। दोनों माता पार्वती के रूप हैं। कन्या कुमारी में देवी कुंवारी अर्थात अविवाहिता कन्या रूप में है और उधर वैष्णव माता के मंदिर में प्रतिदिन कन्याओं का पूजन होता है। पूर्व में माता कामाख्या है तो पश्चिम में नासिक में सप्तशृंगी देवी है। एक अदृश्य बंधन उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक देश को, संस्कृति को और हम सबको बांधता है।

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kanyakumari temple history: भारत के 51 शक्ति पीठों में से एक कन्याकुमारी भी है। माना जाता है कि यहां सती की रीढ़ की हड्डी गिरी थी। मंदिर पुरातन है और इसके इतिहास  का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। देवी कन्या कुमारी की मूर्ति की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। मंदिर का स्थापत्य लगभग 3000 वर्ष पुराना है। परंतु इतिहास के अनुसार वर्तमान मंदिर आठवीं शताब्दी में पांड्या सम्राटों ने बनवाया था, चोला, चेरी, वेनाड और नायक राजवंशों के शासन के दौरान समय-समय पर इसका पुर्ननर्माण हुआ।

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Bhagavathi Amman Temple: यहां की मंदिर-स्थापत्य कला इन्हीं शासकों की देन है। मंदिर समुद्र तट से कुछ ऊंचाई पर है तथा इसके चारों ओर लगभग 18-20 फुट की दीवार है। राजा मार्तंड वर्मा (1729 से 1758) के राज्य काल में कन्याकुमारी का इलाका त्रावणकोर राज्य का हिस्सा बन गया था जिसकी राजधानी पद्मनाभपुरम थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद त्रावणकोर राज्य का भारतीय संघ में विलय होने पर वर्ष 1956 में यह तमिलनाडु का एक जिला बन गया। कन्याकुमारी जिले का नाम देवी कन्याकुमारी के नाम पर ही रखा गया है।

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Is there a beach in Kanyakumari: समुद्र के किनारे जहां मंदिर है उस छोटे से नगर को भी कन्याकुमारी कहते हैं। इस भाग की लुभावनी खासियत तीन समुद्रों का संगम है-पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिन्द महासागर और पश्चिम की ओर अरब सागर। यह संगम इसे तीर्थ स्थान की संज्ञा देता है। संगम के स्थान पर पानी का प्रवाह तेज है। चट्टानों से टकराती लहरें और पानी का उफान मन में श्रद्धायुक्त भय पैदा करता है और इंसान नत-मस्तक हो जाता है। धार्मिक दृष्टि से, माता का मंदिर तथा विवेकानंद स्मारक तीर्थ स्थल हैं तो तिरुवल्लुवर की प्रतिमा तमिल साहित्य के महान संत कवि की याद दिलाती है।

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History of Kumari Amman Temple: कन्या कुमारी मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है जिसमें काले पत्थर के खम्भों पर गूढ़ और पेचीदा नक्काशी है। मंदिर में कई गुम्बज हैं जिनमें गणेश, सूर्यदेव, अय्यपा स्वामी, काल भैरव, विजय सुंदरी और बाला सुंदरी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। मंदिर परिसर में मूल-गंगातीर्थम नामक कुआं है जहां से देवी के अभिषेक का जल लाया जाता है। मूलत: मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है जो किसी समय में खुला रहता था परंतु अब प्रवेश उत्तरी द्वार से किया जाता है। पूर्व द्वार वर्ष में केवल पांच बार विशेष त्यौहारों के अवसर पर ही खुलता है। पूर्व द्वार बंद होने के पीछे किंवदंती है कि देवी की नथ का हीरा अत्यंत तेजस्वी था तथा उसकी चमक दूर तक जाती थी। इसे दीप स्तम्भ का प्रकाश समझ कर जहाज इस दिशा में आ जाते और चट्टानों से टकरा जाते थे। एक कथा के अनुसार यह हीरा शेषनाग ने देवी को समर्पित किया था।

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Kanyakumari Temple : मंदिर के भीतर मंदिर से जुड़े 11 तीर्थ स्थल हैं। अंदर के परिसर में तीन गर्भ-गृह, गलियारे और मुख्य नवरात्रि मंडप हैं परंतु इन्हें एकदम से समझ पाना या रुककर देखना इतना आसान नहीं है क्योंकि अंदर से मंदिर की बनावट भूल-भुलैया सी है, फिर दर्शनार्थियों की भीड़ के कारण इधर-उधर रुकना अक्सर कठिन होता है। यदि आप ऐसे समय में जाएं जब भीड़ कम हो तो इसे स्थानीय व्यक्ति के साथ अंदर से देखा जा सकता है। मंदिर के गर्भगृह की कांति मन को अचंभित और आंखों को चकाचौंध कर देती है। गर्भ गृह में दक्षिण शैली के कई बातियों वाले लटकते हुए दीपक प्रज्वलित होते हैं, देवी का शृंगार भी दक्षिण पद्धति में होता है। मूर्ति काले पत्थर की बनी है और लम्बे हार, नथ चमकीली बार्डर वाली साड़ी से सजी देवी दर्शनार्थी को मंत्रमुग्ध कर देती है।

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What is the history of Kumari Amman Temple: आमतौर पर देवी को यहां कुमारी अम्मन (अर्थात अम्मा) के नाम से जाना जाता है। अन्य नाम देवी भगवती, देवी बाला, भद्रकाली आदि हैं। माता के कुमारी रूप में पीछे एक रोचक कहानी है। बाणासुर नाम के राक्षस ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा को प्रसन्न करके अमरत्व का वर मांगा, पर भगवान ने कहा, ‘अमरत्व तो नहीं मिल सकता कुछ और मांगो।’ तो बाणासुर ने मांग की कि केवल कुंवारी कन्या को छोड़ कर उसे कोई न मार सके। वर पाते ही बाणासुर ने पृथ्वी पर कहर ढाना शुरू कर दिया और देवताओं को बंदी बना लिया।

त्रस्त देवताओं ने मां भगवती को प्रसन्न कर अपनी व्यथा सुनाई। तदनुसार देवी ने कन्या रूप में राजा भरत के घर जन्म लिया। राजा के आठ पुत्र थे तथा एक ही कन्या थी जिसका नाम कुमारी था। जब राजा भरत ने अपना राज्य सब बच्चों में बराबर बांटा तब दक्षिण का राज्य उनकी बेटी कुमारी के हिस्से आया। पार्वती का रूप होने के कारण सहज ही था कि देवी के मन में शिव को पति रूप में पाने की चाह उठी। उसने तपस्या की और भोले शिव शादी को मान गए।

विवाह ब्रह्म मुर्हूत (अर्थात सुबह होने से पहले का) था। शिव शंकर कैलाश से रात को बारात लेकर चल पड़े और इधर देवता घबरा गए कि यदि यह विवाह सम्पन्न हुआ तो बाणासुर का वध असंभव होगा। शिव जी के पहुंचने में विलम्ब करवाना आवश्यक था। अत: नारद मुनि की मदद से पौ फटने से पहले ही मुर्गे ने बांग दे दी। इसे दिन निकलने का संकेत जानकर भगवान शिव कैलाश को लौट गए। शिवजी के न आने के कारण बाणासुर ने मौका देख कर इस सुंदर कन्या से जबरन विवाह करना चाहा। देवी कन्या क्रोध में तो थी ही उधर बाणासुर ने परेशान करना शुरू किया तो क्रोध की ज्वाला में तपती देवी ने उससे युद्ध किया जिसमें बाणासुर मारा गया। देवी आजन्म अविवाहित रहीं और बड़ी कुशलता से दक्षिण का अपना राज्य संभालने लगीं। उसके राज्य काल में यह भाग कला, संस्कृति, धर्म आदि से सम्पन्न हो गया और आज भी है।

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What are the best places to visit in Kanyakumari: पर्यटन की दृष्टि से कन्या कुमारी एक जाना-माना और बहुत व्यस्त पर्यटन केंद्र है। मंदिर के अतिरिक्त यहां का विवेकानंद स्मारक दर्शनीय हैं। दिसम्बर 1862 में कैलिफोर्निया जाने से पूर्व, स्वामी विवेकानंद देवी के दर्शन के लिए यहां आए थे और इस चट्टान पर तीन दिन बैठ कर उन्होंने तपस्या की थी।

Why is Kanyakumari famous: वर्ष 1970 में यह विवेकानंद स्मारक बनवाया गया था। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर देवी कुमारी ने भी तपस्या की थी जिसका सबूत वह चरण चिन्ह हैं जो श्रीपाद मंडप में स्थापित हैं। स्मारक से कुछ दूरी पर समुद्र में ही संत कवि तिरुवल्लुवर  की 133 फुट की मूर्ति है। दोनों स्थानों के लिए जहाज की फेरी चलती है।

Kanyakumari tourism : शहर के आसपास कई धार्मिक, ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान हैं जैसे 17वीं सदी का सुचिन्द्रम मंदिर, थोलावलई मंदिर, वटाकोटाई का किला, पद्मनाभपुरम का महल, ओल्करुवी झरना, 34 किलोमीटर दूर भगवान सुब्रह्मण्यम मंदिर। शहर में तथा आसपास पुराने चर्च भी हैं, फिर समुद्र का नजारा तो देखते ही बनता है। देश का यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां आप सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का आनंद उठा सकते हैं।

 

 


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Niyati Bhandari

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