Shree Krishna: कंस के शरीर का दिव्य तेज श्री कृष्ण में समा गया...

punjabkesari.in Saturday, Nov 09, 2024 - 07:27 AM (IST)

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Shree Krishna: कंस ने अपने मंत्री और रिश्तेदार अक्रूर जी को श्रीकृष्ण और बलरामजी को लेने के लिए भेजा। उसने अपने राज्य में उत्सव का आयोजन करके इसमें दोनों भाइयों को बुलाकर मार डालने की योजना बनाई। जब कृष्ण और बलराम को लेने श्री अक्रूर जी गोकुल पहुंचे तो कोई भी गोकुलवासी नहीं चाहता था कि वे गोकुल छोड़ कर जाएं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण है और इसी उद्देश्य से उन्होंने जन्म लिया है। इस प्रकार समझाने के बाद अक्रूर के साथ वे दोनों भाई कंस के राज्य में आ गए। 

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कंस ने दोनों भाइयों को मारने के उद्देश्य से कूटनीतिपूर्ण मल्लयुद्ध का आयोजन किया था। यहां उसने दोनों भाइयों को आमंत्रित किया। भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी के रंग भूमि में आने पर चाणूर एवं मुष्टिक ने उन्हें मल्ल युद्ध के लिए ललकारा। श्री कृष्ण चाणूर और बलराम जी मुष्टिक से जा भिड़े। भगवान श्री कृष्ण के अंगों की रगड़ से चाणूर की रग-रग ढीली पड़ गई। उन्होंने चाणूर की दोनों भुजाएं पकड़ लीं और बड़े वेग से कई बार घुमाकर धरती पर दे मारा। इससे चाणूर के प्राण निकल गए और वह कटे वृक्ष की भांति गिर कर शांत हो गया। 

दूसरी ओर बलराम जी ने मुष्टिक को एक मुक्का जमाया और वह खून उगलता हुआ पृथ्वी पर गिर कर मर गया। देखते ही देखते कंस के पांचों प्रमुख पहलवान श्री कृष्ण और बलराम जी के हाथों मारे गए। भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी की इस अद्भुत लीला को देख कर दर्शकों को बड़ा आनंद हुआ। चारों ओर उनकी जय जयकार और प्रशंसा होने लगी परंतु कंस को इससे बहुत दुख हुआ। वह और भी चिढ़ गया। जब उसके प्रधान पहलवान मारे गए और बचे हुए भाग गए तब उसने बाजे बंद करा दिए। कंस ने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि, ‘‘वसुदेव के लड़कों को बाहर निकाल दो, गोपों का सारा धन छीन लो और नंद को बंदी बना लो तथा वसुदेव-देवकी को मार डालो। उग्रसेन मेरा पिता होने पर भी शत्रुओं से मिला हुआ है। इसलिए उसे भी जीवित मत छोड़ो।’’

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कंस इस प्रकार बढ़-चढ़ कर बकवास कर ही रहा था कि भगवान श्री कृष्ण फुर्ती से उछल कर उसके मंच पर पहुंच गए। जब कंस ने देखा कि उसके मृत्यु रूपी भगवान श्री कृष्ण उसके सामने आ गए हैं तब वह तलवार लेकर उठ खड़ा हुआ और श्री कृष्ण पर चोट करने के लिए पैंतरा बदलने लगा। जिस प्रकार गरुड़ सांप को पकड़ लेता है उसी प्रकार श्री कृष्ण ने कंस को पकड़ लिया। कंस का मुकुट गिर गया। भगवान ने केश पकड़ कर उसे मंच से धरती पर पटक दिया। फिर श्री कृष्ण स्वयं उसके ऊपर कूद पड़े। उनके कूदते ही कंस की मृत्यु हो गई।

कंस निरंतर शत्रुभाव से श्री कृष्ण का चिंतन करता रहता था। वह खाते-पीते, उठते-बैठते अपने सामने भगवान श्री कृष्ण को ही देखता रहता था। इसके प्रभाव से उसे सारूप्य मुक्ति की प्राप्ति हुई। सबके देखते ही देखते उसके शरीर से एक दिव्य तेज निकल कर श्री कृष्ण में समा गया।   

कंस के मरते ही कङ्क इत्यादि उसके आठ छोटे भाई श्री कृष्ण और बलराम को मारने के लिए दौड़े। बलराम जी ने क्षण भर में उनका काम तमाम कर डाला। उस समय आकाश में दुंदुभियां बजने लगीं। ब्रह्मा, शंकर तथा इंद्रादि देवता बड़े आनंद से भगवान श्री कृष्ण पर पुष्पों की वर्षा करते हुए उनकी स्तुति करने लगे। कंस और उसके भाइयों की स्त्रियां अपने पतियों की मृत्यु पर विलाप करती हुई वहां आईं। भगवान श्री कृष्ण सारे संसार के जीवन दाता हैं। उन्होंने कंस की रानियों को समझाकर ढाढ़स बंधाया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने मरने वालों की लोक रीति के अनुसार क्रिया कर्म की व्यवस्था करवा दी।

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Content Writer

Niyati Bhandari