Jyeshtha maas: ज्येष्ठ मास में करें ये काम, पुण्य के साथ पाएं आंतरिक शांति
punjabkesari.in Monday, May 12, 2025 - 03:49 PM (IST)

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Jyeshtha maas 2025: ज्येष्ठ मास हिन्दू पंचांग का तीसरा महीना है, जो ग्रीष्म ऋतु में आता है और इसमें सूर्य अत्यंत तेज होता है। यह महीना विशेष रूप से तप, संयम और जल दान का माना जाता है। कुछ ऐसे आध्यात्मिक और जीवनशैली से जुड़े काम हैं, जो शास्त्रीय संकेतों पर आधारित हैं। उन्हें 1 महीने तक करना चाहिए। इन सभी साधनाओं का उद्देश्य केवल पुण्य अर्जन नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और भावनात्मक परिष्कार भी है:
प्रातः सूर्योदय से ठीक पहले 5 मिनट मौन होकर पूर्व दिशा की ओर बैठें और सूर्य के निकलने की प्रतीक्षा करें। जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई दे, आंखें बंद करें और मन में सूर्यबिंब की कल्पना करें। यह ध्यान न केवल मानसिक स्पष्टता देता है, बल्कि ऋषियों के अनुसार यह अदृष्ट पुण्य (जो अगोचर है) उत्पन्न करता है, जो जन्म-जन्मांतर में रक्षा करता है।
शास्त्रों में वृक्षों को देवता का रूप माना गया है, परंतु छाया सेवा (जिसमें छाया में बैठकर मौन साधना हो) अदृश्य देवताओं की प्रसन्नता का कारण बनती है। घर में तुलसी अथवा गुलाब के पौधे की छाया में प्रतिदिन दोपहर (12 से 2 बजे के बीच) एक कटोरी में जल रखें और मौन होकर बैठें।
दोपहर में किसी निर्जन स्थान (जैसे बगीचे या सूनी सड़क) पर एक छोटा सा मटका ठंडे पानी से भरकर छाया में रख दें और उस पर बेलपत्र या आम के पत्ते रखें। यह उस जल को पीने वाले अदृश्य जीवों के लिए अमृत के समान होता है। स्कंद पुराण में जलदान के साथ छाया और पत्तों का प्रयोग विशेष फलदायी बताया गया है।
ज्येष्ठ माह के हर सोमवार को केवल एक समय फलाहार लें। यदि संभव हो तो दिन भर मौन व्रत रखें अन्यथा जितना कम हो सके, उतना कम बोलें। यह व्रत शरीर के ताप को नियंत्रित करता है और मन में ऐसी तरंगें उत्पन्न करता है, जो अगले जन्मों में भी मनुष्य को सांसारिक ताप से बचा सकती हैं।
प्रत्येक मंगलवार और शुक्रवार को घर के किसी एक कोने में पतली आटे की रेखा बनाएं, ताकि चींटियां भोजन पा सकें। ये छोटे जीव जब तृप्त होते हैं तो सूक्ष्म लोक में आपकी करुणा के भाव का संचार होता है, जो विशेष पुण्य फल देता है।
ज्येष्ठ मास में प्रति शनिवार एक कागज पर अपने दोष (जैसे क्रोध, मोह, ईर्ष्या) को लिखें और उसे हवनकुंड या दीपक की अग्नि में समर्पित करें। यह वैदिक आत्महोम का लघु रूप है। इसे करने से मानसिक शुद्धि होती है और चित्त में सात्विकता का विकास होता है।