Mahabharat: अभिमन्यु के हत्यारे का अजब-गजब तरीके से हुआ था वध
punjabkesari.in Wednesday, Nov 16, 2022 - 01:26 PM (IST)
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Mahabharat: लगभग 5000 वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र में जब धर्म एवं अधर्म के मध्य महाभारत का युद्ध कौरव-पांडवों के मध्य चल रहा था यह कथा उस समय की है। जब इस युद्ध में अर्जुन के निहत्थे पुत्र अभिमन्यु को जयद्रथ ने छलपूर्वक मारा था, उस समय अर्जुन ने जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा की थी।
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महाभारत का भयंकर युद्ध चल रहा था। अर्जुन युद्ध करते-करते रणक्षेत्र से काफी दूर निकल गए थे। इस अवसर का लाभ उठाते हुए अर्जुन की अनुपस्थिति में पांडवों को पराजित करने के लिए गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु उस चक्रव्यूह को भेदने के लिए उसमें प्रवेश कर गया। अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक उस चक्रव्यूह के छ: चरण भेद लिए जब वह सातवें चरण में प्रवेश कर गया तो उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि सात महारथियों ने घेर लिया तथा उस निहत्थे अभिमन्यु पर टूट पड़े।
जयद्रथ ने निहत्थे अभिमन्यु पर पीछे से जोरदार प्रहार किया। वह वार इतना तीव्र एवं घातक था कि अभिमन्यु उसे सहन न कर सका तथा वीर गति को प्राप्त हो गया। अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन क्रोध से पागल हो उठे। उन्होंने तभी प्रतिज्ञा की कि यदि अगले दिन सूर्यास्त से पूर्व उन्होंने अपने पुत्र की हत्या करने वाले कौरवों के जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्मदाह कर लेंगे।
उसकी यह प्रतिज्ञा सुनकर जयद्रथ भयभीत होकर दुर्योधन के पास पहुंचा तथा उसे अर्जुन की प्रतिज्ञा के बारे में बतलाया। दुर्योधन जयद्रथ का भय दूर करते हुए बोला, ‘‘चिंता मत करो, मित्र! मैं तथा सारी कौरव सेना महान योद्धा कर्ण सहित कल महाभारत के युद्ध में तुम्हारी रक्षा करेंगे। कल शाम होने तक अर्जुन तुम तक नहीं पहुंच पाएंगा। उसे शाम होने पर आत्मदाह करना ही पड़ेगा।’’
महाभारत का युद्ध जब अगले दिन शुरू हुआ तो अर्जुन की निगाहें जयद्रथ को तलाश करने लगीं मगर वह कहीं भी दिखलाई नहीं दे रहा था। धीरे-धीरे दिन बीतने लगा तथा अर्जुन की निराशा भी बढ़ने लगी कि उन्होंने कल जो प्रतिज्ञा ली थी उसे वह पूरी नहीं कर पाएंगे। अर्जुन की व्याकुलता देख कर उनके सारथी श्री कृष्ण बोले, ‘‘पार्थ! समय बीत रहा है। कल तुमने जो प्रतिज्ञा ली थी उसे पूरा करने का समय नजदीक आ रहा है तथा कौरव सेना ने जयद्रथ को अपने रक्षा कवच में घेर रखा है। अब तुम शीघ्रता से कौरव सेना का संहार करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो।
अपने सारथी भगवान श्री कृष्ण के ये शब्द सुनकर अर्जुन का उत्साह बढ़ा और वह जोश से युद्ध करने लगे परंतु जयद्रथ तक पहुंचना मुश्किल था। संध्या होने वाली थी। तभी श्री कृष्ण ने अपनी माया फैला दी। इसके फलस्वरूप सूर्य बादलों में छिप गया तथा संध्या का भ्रम उत्पन्न हो गया। संध्या हो गई है और अर्जुन को अपनी प्रतिज्ञा अनुसार आत्मदाह करना होगा, यह सोच कर दुर्योधन एवं जयद्रथ खुशी से उछल पड़े तथा जयद्रथ कौरव सेना के आगे आकर अर्जुन द्वारा आत्मदाह करने की खुशी में अट्टहास करने लगा।
जयद्रथ को देख कर श्री कृष्ण बोले, ‘‘हे पार्थ! तुम्हारा शत्रु तुम्हारे सामने खड़ा है। उठाओ अपना गांडीव और वध कर दो जयद्रथ का। वह देखो अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है।’’ यह कह कर श्री कृष्ण ने अपनी माया समेट ली।
देखते ही देखते सूर्य बादलों की ओट से बाहर आ गया। सबकी निगाहें आसमान में सूर्य की तरफ उठ गईं। सूर्य अभी भी चमक रहा था। यह देख कर दुर्योधन एवं जयद्रथ के पैरों तले जमीन खिसक गई। जयद्रथ डर कर भागने लगा, उसी समय अर्जुन ने अपना गांडीव उठा लिया।
तभी अर्जुन को श्री कृष्ण ने चेतावनी दी, ‘‘पार्थ! जयद्रथ के पिता ने इसे वरदान दिया था कि जो जयद्रथ का मस्तक धरती पर गिराएगा, उसका मस्तक भी सौ टुकड़ों में विभक्त हो जाएगा। अगर इसका मस्तक धरती पर गिरा तो तुम्हारे सिर के भी सौ टुकड़े हो जाएंगे। उत्तर दिशा में यहां से सौ योजन की दूरी पर जयद्रथ के पिता तप कर रहे हैं। तुम जयद्रथ का मस्तक इस प्रकार काटो कि वह उसके पिता की गोद में जाकर गिरे।’’
अर्जुन ने श्री कृष्ण की चेतावनी बड़े ध्यान से सुनी और अपने लक्ष्य की ओर ध्यान रखकर बाण छोड़ दिया। उस बाण ने जयद्रथ का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे लेकर सीधा जयद्रथ के पिता की गोद में जा गिराया। पुत्र का कटा शीश देखकर जयद्रथ के पिता चौंककर उठे तो पुत्र का कटा शीश गोदी से जमीन पर गिर गया। जयद्रथ के कटे शीश के जमीन पर गिरते ही जयद्रथ के पिता के शीश के भी सौ टुकड़े हो गए। इस प्रकार अर्जुन ने जयद्रथ की मौत का बदला लेकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।