Sita Navami: माता सीता के प्राकट्य दिवस पर जानें कुछ खास
punjabkesari.in Tuesday, Apr 15, 2025 - 07:17 AM (IST)

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Sita Navami Janki Jayanti 2025: वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्री राम की प्राणप्रिया आद्याशक्ति, सर्वमङ्गलदायिनी, पतिव्रताओं में शिरोमणि श्री सीता जी का प्राकट्य हुआ। यह दिन श्री सीता नवमी के नाम से जगत प्रसिद्ध है। इस पर्व को जानकी नवमी भी कहते हैं। वर्ष 2025 में यह तिथि 5 मई सोमवार को पड़ रही है। इसी दिन पुण्य नक्षत्र में जब मिथिला नरेश महाराज जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञभूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे। उसी समय पृथ्वी से एक बालिका प्रकट हुई। उस बालिका का नाम सीता रखा गया। जोती हुई भूमि तथा हल की नोक को सीता कहा जाता है।
श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम के जन्म के सात वर्ष तथा एक माह पश्चात भगवती सीता जी का प्राकट्य हुआ। गोस्वामी तुलसीदास जी बालकांड के प्रारंभ में आदिशक्ति सीता जी की वंदना करते हुए कहते हैं :
‘‘उद्भवस्थिति संहारकारिणी क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥’’
माता जानकी ही जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली तथा समस्त संकटों तथा क्लेशों को हरने वाली हैं। वह मां भगवती सीता सभी प्रकार का कल्याण करने वाली रामवल्लभा हैं। उन भगवती सीता जी के चरणों में प्रणाम है, मां सीता जी ने ही हनुमान जी को उनकी असीम सेवा भक्ति से प्रसन्न होकर अष्ट सिद्धियों तथा नव-निधियों का स्वामी बनाया।
‘‘अष्टसिद्धि नव-निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता॥’’
सीता-राम वस्तुत: एक ही हैं।
‘‘सियाराम मय सब जग जानी। करहुं प्रणाम् जोरि जुग पानी॥’’
यह सर्वजगत सीताराम मय है। जिन्हें तुलसीदास जी दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हैं, राजा जनक की पुत्री होने से श्री सीता जी को जानकी जी, मिथिला की राजकुमारी होने से मैथिली तथा राजा जनक के विदेहराज होने के नाते वैदेही इत्यादि नामों से स्मरण किया जाता है।
भगवती सीता जी की पति-परायणता, त्याग सेवा, संयम, सहिष्णुता, लज्जा, विनयशीलता भारतीय संस्कृति में नारी भावना का चरमोत्कृष्ट उदाहरण तथा समस्त नारी जाति के लिए अनुकरणीय है।
जब प्रभु श्री राम तथा लक्ष्मण वनवास के समय वन में भटक रहे थे तथा श्री सीता जी की खोज में लगे हुए थे, तब मां पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा ये वनवासी कौन हैं तो भगवान शिव बोले यह साक्षात् परब्रह्म हैं। इस समय मानव लीला में अपनी पत्नी सीता जी को ढूंढ रहे हैं जिन्हें रावण हर कर ले गया है।
जब मां पार्वती भगवान श्री राम की परीक्षा लेने पहुंचीं, क्या देखती हैं कि उनके सामने से सीता राम और लक्ष्मण आ रहे हैं। जहां भी उनकी दृष्टि पड़ती है वहां ही उनको सीता-राम और लक्ष्मण जी आते हुए दिखाई देते हैं। यह समस्त जगत सीताराम मय है, ऐसा वेद कहते हैं।