आप भी हो सकते हैं अमर, जेहन में रखें छोटी सी बात

punjabkesari.in Wednesday, Dec 14, 2016 - 12:03 PM (IST)

जमीन में मिट्टी के नीचे दबा एक बीज अपने खोल में दुबका आराम से सो रहा था। वहीं मिट्टी में दबे उसके बाकी साथी भी अपने-अपने खोल में सिमटे पड़े थे। दुनिया के बाहरी संघर्ष से दूर इस तरह सुरक्षित आवरण में सिमटे रहकर उन्हें बड़ा सुकून मिल रहा था। तभी अचानक एक दिन जोर की बरसात हुई, जिससे मिट्टी के ऊपर कुछ पानी इकठ्ठा हो गया। इससे मिट्टी में दबे सारे बीज भीगते हुए सडऩे लगे। वह बीज भी पानी से तरबतर हो गया और सडऩे लगा। 


अपनी यह हालत देख वह सोचने लगा, ‘‘इस तरह तो मैं एक बीज के रूप में ही मर जाऊंगा। मेरी हालत भी मेरे दोस्तों की तरह ही हो जाएगी, जो मरने की कगार पर हैं। मुझे मरना नहीं है। इसके लिए मुझे कुछ ऐसा करना होगा कि मैं अमर हो जाऊं।’’


यह सोचकर बीज ने हिम्मत दिखाई और पूरी ताकत लगाकर अपने खोल को तोड़ते हुए बाहर निकल आया और धीरे-धीरे खुद को एक पौधे के रूप में परिवर्तित कर लिया। अब मिट्टी के साथ बारिश भी उसकी दोस्त बन चुकी थी और बरसात का पानी उसे नुक्सान पहुंचाने की जगह उसके फलने-फूलने में उसकी मदद करने लगा। इस तरह धीरे-धीरे बढ़ते हुए वह एक विशाल वृक्ष में परिवर्तित हो गया। मगर एक दिन ऐसी स्थिति भी आई जब वह इतना बड़ा हो गया कि अब और नहीं बढ़ सकता था। 


यह देख उसने एक दिन मन ही मन सोचा, ‘‘इस तरह यहां खड़े-खड़े मैं एक दिन मर जाऊंगा, पर मुझे तो अमर होना है।’’ 


यह सोचकर उसने अपनी शाख पर एक कली को जन्म दिया। कली बसंत में खिलने लगी। उसकी खुशबू दूर-दूर तक फैल गई, जिससे आकर्षित होकर भंवरे वहां मंडराने लगे। इस प्रकार इस पौधे के बीज दूर-दूर तक फैल गए और वह एक बीज, जिसने परिस्थितियों के सामने हार न मानकर खुद को परिवर्तित करने का फैसला किया था, सैकड़ों बीजों को जन्म देते हुए लगातार आगे बढ़ता रहा।


सार यह है कि परिवर्तन को एक घटना की तरह नहीं, बल्कि एक प्रक्रिया की तरह देखना चाहिए। यह नई खोज की तरह होता है। सकारात्मक परिवर्तन के साथ हम विकास की नई संभावनाओं को देखने लगते हैं। यह हमें मिटाने की जगह मजबूत बनाता है और हम प्रगतिशील हो जाते हैं।


 


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