क्या आपकी सोच आपके सपनों की दुश्मन तो नहीं ?
punjabkesari.in Friday, Apr 11, 2025 - 09:31 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Story: आशा और निराशा के क्षण मनुष्य के जीवन में रात और दिन की तरह आते-जाते रहते हैं। एक ओर जहां आशा जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है, वहीं दूसरी ओर निराशा मनुष्य को मृत्यु की ओर ले जाती है, क्योंकि निराश व्यक्ति हमेशा अपने जीवन से उदासीन और विरक्त रहता है।
इसीलिए कहा जाता है कि निराशा ऐसी चीज है जो मनुष्य को आत्महत्या करने तक मजबूर कर देती है, जबकि मृत्यु के मुख में जाता हुआ व्यक्ति अपने आशावादी विचारों के बल पर फिर से जी उठता है। अत: मनुष्य के लिए यह जरूरी है कि वह खुद को निराशा नामक खतरनाक बीमारी से बचाकर रखे अन्यथा यह तन और मन दोनों को ही नष्ट कर देती है। कहते हैं कि जो निराश है, वह निर्जीव है और इसीलिए निराशा से घिरा हुआ मनुष्य संसार में बिना पंखों के पक्षी की तरह दयनीय एवं दुखपूर्ण जीवन काटता है। अक्सर हम यह तथ्य भूल जाते हैं कि संसार में ऐसा कोई व्यक्ति आज तक पैदा ही नहीं हुआ, जिसके जीवन में विपत्तियां और विफलताएं न आई हों।
विफलताएं, मुसीबतें और असफलताएं तो सिर्फ यह जानने के लिए ही आती हैं कि व्यक्ति किस हद तक अपने भीतर साहस संजोए रख सकता है। जिन्होंने हर कठिनाई को एक चुनौती माना, उनके लिए इस संसार में कोई अवरोध है ही नहीं, मसलन, छात्रों को आए दिन अध्यापक के पूछे प्रश्नों को हल करना ही पड़ता है, तभी तो उन्हें उत्तीर्ण होने की प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
अत: हमें यह समझना चाहिए कि अवरोध तो एक प्रकार का अध्यापक है जो हमारे भीतर छुपी हुई प्रतिभा को विकसित करने के लिए उत्तेजना प्रदान करता है और चिर स्मरणीय सफलता वरण कर सकने की क्षमता से हमें सुसम्पन्न बनाता है इसीलिए कहा जाता है कि जो व्यक्ति कठिनाई के दिनों में आशावादी रह सकता है, उसे संसार की कोई भी मुसीबत नीचे नहीं गिरा सकती किन्तु जो व्यक्ति रात्रि के अंधकार को ही शाश्वत मानकर बैठ जाता है और जिसे यह विश्वास ही नहीं कि कुछ समय के पश्चात अरुणोदय भी हो सकता है, उसे बौद्धिक दृष्टिकोण से नास्तिक कहा जाता है।
स्मरण रहे! संसार चक्र किसी एक व्यक्ति की इच्छा के संकेतों पर गतिशील नहीं है, अपितु वह अपनी ही चाल चलता है और इसके अलग-अलग धागों के बीच व्यक्तियों का अपना एक निजी संसार होता है, जिसमें गति के साथ-साथ आरोह-अवरोह भी अनिवार्य है एवं अवश्यंभावी है। अत: उस समय सम्मुख उपस्थित परिस्थितियों का निदान-उपचार भी आवश्यक है, पर उसके कारण कुंठित हो जाना, वह व्यक्ति के जीवन की एक हास्यास्पद प्रवृत्ति मात्र है क्योंकि जीवन का पौधा आशा के जल से सींचे जाने पर ही बढ़ता और फलता-फूलता है और निराशा के तुषार से उसका अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता है।
तभी तो कहते हैं कि जो व्यक्ति आशावादी है, वह अपने उज्ज्वल भविष्य के स्वप्न को पूर्ण करने के लिए निरंतर प्रयत्न करता है, साधन जुटाता है और अंतत: सफल होकर ही रहता है। और जो छुई-मुई की तरह जरा-सी कठिनाई आने पर मुरझा जाते हैं, अवरोधों को राई न मानकर बड़ा पहाड़ समझते हैं, उनके लिए अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना एवं अपने आपको संभाल सकना एक बहुत बड़ी समस्या बन जाता है और वे हर काम में हर बार असफल ही होते रहेंगे।
एक कोने में मुंह लटकाए बैठे रहने से और नैराश्य पर अपने मन को केंद्रित किए रहने से मनुष्य इतना नकारात्मक हो जाता है कि छोटे से छोटा काम कर सकने में भी वह शंकाशील रहता है और काम में हाथ डालते ही उसका पहला संकल्प यही उठता है कि ‘मेरे से यह कार्य नहीं हो पाएगा।
यह नकारात्मक भावना इतनी अशुभ होती है कि वह फिर किसी भी कार्य को न तो सफल होने देती हैं और न पूर्ण। अत: हर छोटी-मोटी बात में निराश होकर बैठ जाना, यह जीवन जीने का योग्य तरीका नहीं है क्योंकि हर रात के बाद सवेरा है ही। अत: अपने भीतर आशावाद को जगाए रखें और निराशा रूपी नकारात्मकता से खुद को सदैव बचाकर ही रखें।