Navratri Special: क्या है नवरात्रि, जानिए आध्यात्मिक रहस्य
punjabkesari.in Tuesday, Apr 01, 2025 - 08:04 AM (IST)

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Navratri Special: जगत पालनकर्ता भगवान विष्णु जी के अन्त:करण की शक्ति सर्व-स्वरूपा योगमाया आदिशक्ति महामाया हैं तथा वह देवी ही प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, स्थिति तथा लय की कारण भूता हैं। वही शिवा स्वरूपी शिव अर्धांगिनी पार्वती एवं सती हैं, जिनकी आराधना करके स्वयं ब्रह्माजी इस जगत के सृजनकर्ता, भगवान विष्णु पालनकर्ता तथा भगवान शिव संहार करने वाले हुए। तत्तवार्थ जानने वाले मुनिगण जिन्हें मूल प्रकृति कहते हैं। वेद, उपनिषद्, पुराण, इतिहास आदि सभी प्राचीन ग्रन्थों में सर्वत्र मां भगवती आदिशक्ति की ही अपरम्पार महिमा का वर्णन है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर के साथ-साथ वासन्तिक नवरात्रि का प्रारम्भ होता है। प्रतिपदा से नवमी तक मां नवदुर्गा के नवरूपों की पूजा-आराधना, पाठ, जप, यज्ञ-अनुष्ठान, व्रत, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि मां भगवती आदिशक्ति को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। मां दुर्गा जी के इन रूपों को शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री नामों से जाना जाता है।
दुर्गा सप्तशती के बारहवें अध्याय में मां जगदम्बा दुर्गा सप्तशती में वर्णित अध्यायों के पाठ के संबंध में कहती हैं, जो पुरुष इन स्तोत्रों द्वारा एकाग्रचित्त होकर मेरी स्तुति करेगा, उसके सम्पूर्ण कष्टों को नि:संदेह मैं हर लूंगी। मधुकैटभ के नाश, महिषासुर के वध और शुम्भ-निशुम्भ के वध की जो मनुष्य कथा कहेंगे अथवा एकाग्रचित्त होकर भक्तिपूर्वक सुनेंगे, उनको कभी कोई पाप न रहेगा, पाप से उत्पन्न हुई विपत्ति भी उनको न सताएगी, उनके घर में दरिद्रता न होगी। उनको किसी प्रकार का भय न होगा इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को भक्तिपूर्वक मेरे इस कल्याणकारक माहात्म्य को सदा पढ़ना और सुनना चाहिए।
प्राचीन काल में देवताओं और असुरों में पूरे सौ वर्षों तक घोर युद्ध हुआ था। इस युद्ध में देवताओं की सेना परास्त हो गई थी और इस प्रकार सम्पूर्ण देवताओं को जीत महिषासुर इन्द्र बन बैठा था। देवताओं ने अपनी हार का सारा वृत्तान्त भगवान श्रीविष्णु और शंकर जी से कह सुनाया, कि हे प्रभु! महिषासुर सूर्य, चन्द्रमा, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण तथा अन्य देवताओं के सब अधिकार छीनकर सबका अधिष्ठाता स्वयं बन बैठा है। यह सुनकर भगवान श्रीविष्णु और शंकरजी बड़े क्रोधित हुए। तभी भगवान विष्णु और शंकर जी तथा अन्य देवताओं के मुख से मां भगवती का तेजोमय रूप प्रकट हुआ, जिसे सभी ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र, दिव्य वस्त्र, उज्ज्वल हार, दिव्य आभूषण भेंट किए और मां का सम्मान किया। तब भीषण युद्ध में देवी ने पराक्रमी दुरात्मा महिषासुर और असुरों की सेना को मार गिराया।
जब मधु-कैटभ नामक दो दैत्य ब्रह्मा जी को मारने के लिए उद्यत हो गए। जब ब्रह्मा जी ने देखा कि भगवान विष्णु योगनिद्रा का आश्रय लेकर सो रहे हैं तो ब्रह्मा जी श्री भगवान को जगाने के लिए उनके नेत्रों में निवास करने वाली योगनिद्रा की स्तुति करने लगे : त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत्सृज्यते जगत्।
तुम इस विश्व को धारण करने वाली हो, तुमने ही इस जगत की रचना की है और तुम ही इस जगत का पालन करने वाली हो। देवी! जगत की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टि रूपा होती हो, पालन काल में स्थित रूपा हो और कल्प के अन्त में संहाररूप धारण कर लेती हो। मां भगवती जगदम्बा देवताओं से कहती हैं, घोर बाधाओं से दुखी हुआ मनुष्य, मेरे इस चरित्र को स्मरण करने से संकट से मुक्त हो जाता है। मां भगवती की कृपा से सम्पूर्ण देवता अपने शत्रु असुरों के मारे जाने पर पहले की तरह यज्ञ भाग का उपभोग करने लगे। भगवती अम्बिका नित्य होती हुई भी बार-बार प्रकट होकर इस जगत का पालन करती हैं, इसको मोहित करती हैं, जन्म देती हैं और प्रार्थना करने पर समृद्धि प्रदान करती हैं।
जो श्रद्धा भाव से मां भगवती की स्तुति करता है, मां आदिशक्ति उन्हें धर्म में शुभ बुद्धि प्रदान करती हैं। वही मनुष्य के अभ्युदय के समय घर में लक्ष्मी का रूप बनाकर स्थित हो जाती हैं। वास्तव में नवरात्रि पर्व है आध्यात्मिक उन्नति और अनुभूति का जिसमें मनुष्य को अपने विकारों पर नियंत्रण करने तथा अपने कल्याण के लिए शुद्ध सात्विक आचार, विचार, आहार तथा जप-तप आदि धर्म कार्यों को करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।