Inspirational Story: आपका खर्च हमेशा बजट से ज्‍यादा रहता है, पढ़ें ये कथा

punjabkesari.in Friday, Feb 25, 2022 - 10:30 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Inspirational Story: एक बार राजा भोज शिकार करने के लिए गए थे। उस दौरान घूमते हुए वह अपने सैनिकों से बिछड़ गए और अकेले पड़ गए। वे थक हार कर एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। तभी उनके सामने एक लकड़हारा सिर पर बोझ उठाए वहां से गुजर रहा था। वह अपनी धुन में मस्त था। वह राजा भोज को देख कर प्रणाम करना तो दूर तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा। भोज को उसके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’

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लकड़हारे ने कहा, ‘‘मैं अपने मन का राजा हूं।’’

भोज ने फिर पूछा, ‘‘अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी। कितना कमाते हो?’’

लकड़हारा ने उन्हें बताया, ‘‘मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं और आनंद में रहता हूं।’’

भोज ने पूछा, ‘‘तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो?’’

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उसने जवाब दिया, ‘‘मैं एक मुद्रा अपने माता-पिता को देता हूं क्योंकि उन्होंने मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया है। मेरे लिए हर कष्ट सहा है। एक मुद्रा अपने ‘आसामी’ को देता हूं- वह मेरा बेटा है। उसे इसलिए देता हूं ताकि मेरी वृद्धावस्था में मुझे लौटा सके। एक मुद्रा मैं अपने ‘मंत्री’ को देता हूं। भला पत्नी से अच्छी मंत्री कौन हो सकती है जो राजा को उचित सलाह देती है। सुख-दुख की साथी होती है।’’

‘‘चौथी मुद्रा में खजाने में देता हूं। पांचवीं मुद्रा का उपयोग खाने-पीने पर खर्च करने में करता हूं क्योंकि मैं अथक परिश्रम करता हूं। छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है। उनका सत्कार करना हमारा परम धर्म है।’’

राजा ने सोचा, ‘‘मेरे पास लाखों मुद्राएं हैं पर मैं जीवन के आनंद से वंचित हूं और यह लकड़हारा सिर्फ छह मुद्रा कमाने के बावजूद कुशल नियोजन द्वारा बड़े संतोष से जी रहा है।’’

लकड़हारे ने राजा भोज को यह सोचने के लिए विवश कर दिया कि कुशल नियोजन एवं संतोष से रहें तो हम अपना जीवन आनंद सहित व्यतीत कर सकते हैं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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