मौन रहने का अभ्यास प्रतिदिन हो तो हम स्वयं व संसार के प्रति उदार हो सकते हैं

punjabkesari.in Wednesday, Mar 21, 2018 - 10:35 AM (IST)

मनुष्य जीवन में हर अनुभव, बात-विचार और व्यवहार के 2 पहलू होते हैं। जैसे दुख-सुख, जीत-हार और सफलता-असफलता। इसी तरह बोलना व मौन रहना है। प्राय: मनुष्यों और पशु-पक्षियों में सबसे अधिक देखी जाने वाली भिन्नता वाणी की ही है। हमारे पास कई भाषाओं के जरिए बोलने के लिए बहुत-सी बातें हैं, पर क्या कभी हमने विचार किया कि इतनी बातों को बोलकर हम इनके बदले अपने लिए क्या प्राप्त करते हैं? असंतुलित, कुंठित और प्रदूषित विचार-भावनाएं हमें कुछ न कुछ बोलने को उकसाती हैं। इस तरह आवेश में बोलते रहने से संख्या-असंख्य, श्लील-अश्लील का अंतर मिट चुका है। मनुष्य की वाणी का स्तर गिर रहा है। उससे अच्छी बातें कम और बुरी बातें ज्यादा निकल रही हैं।


शायद मौनव्रत रखने का आरंभ ऐसी परिस्थितियों के कारण ही हुआ होगा। मौन शब्द मन से ही निकला है। मन यानी अंत:करण की ओर उन्मुख होने की राह। लंबे समय तक मौन होकर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का समुचित निरूपण कर सकता है। मात्र एक दिन के लिए मौनव्रत रखकर हम इसकी महत्ता से परिचित हो सकते हैं। जिस दिन हम चुप रहें और जिस दिन कुछ न कुछ बोलते रहें, दोनों दिन हमें 2 विपरीत अनुभव कराते हैं। जिस दिन हम मुखर होते हैं, स्वयं और आस-पड़ोस को केवल बाहरी दृष्टि से देखते हैं। वहीं जिस दिन हम मौनव्रत रखकर अपने दायित्व निभाते हैं, उसमें हमें स्वयं और संसार को देखने की एक उदार दृष्टि प्राप्त होती है। इस तरह यदि मौन रहने का अभ्यास प्रतिदिन हो तो हम स्वयं और संसार के प्रति उदार हो सकते हैं।


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