पत्नी का बेइंतिहा प्यार पाने के लिए हर पुरुष को निभानी ही पड़ती है शादी की ये रस्म
punjabkesari.in Friday, Nov 29, 2019 - 02:04 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कहा जाता है एक न एक दिनहर किसी को विवाह के बंधन में बंधना ही पड़ता है। हिंदू धर्म में तो शादी 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार माना जाता है। यही कारण है कि इसे किसी धार्मिक अनुष्ठान से कम नहीं माना जाता। विवाह को लेकर हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाज बताए गए हैं। जिन्हें अपनाना बेहद ज़रूरी माना गया है। किंतु आज कल की युवा पीढ़ी इन सभी रस्म-रिवाज़ों को मानने में विश्वास नहीं रखते। इन्ही में से से शादी से जुड़ी सबसे रस्म है सात फेरे। जिसमें लड़का-लड़की एक-दूसरे अपने जीवन से जुड़ी कुछ खास वचन देते हैं। परंतु हम दावे के साथ कह सकते हैं कि आज कल की युवा पीढ़ी को इन फेरों से जुड़ी कोई जानकारी नहीं पता होगी। तो आइए आज हम अपने इस आर्टिकल के जरिए आपको बताते हैं शादी में लिए जाने वाले वचने व उनका अर्थ।
वचन:
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी॥
अर्थ- शास्त्रों के अनुसार इस फेरे में लड़की कहती है कि यदि आप कभी किसी तीर्थ यात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने साथ लेकर जाना। अगर आप किसी भी तरह का कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य करें तो आज की ही तरह हमेशा मुझे अपनी बाईं ओर जगह देना। अगर आप ये स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग यानि बाईं ओर आना स्वीकार करती हूं।
वचन:
पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम॥
अर्थ- दूसरा वचन में कन्या वर से मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, ठूक उसी प्रकार भविष्य में आप मेरे माता-पिता का भी सम्मान करेंगे। तो अगर आप कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहेंगे तो मैं आपके वामांग आना (बाएं ओर) में आना स्वीकार करती हूं।
वचन:
जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात।
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं॥
अर्थ- तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं।
वचन:
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं॥
अर्थ- चौथे वचन में कन्या ये मांगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूरी तरह मुक्त थे। अब जब आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की सभी ज़रूरतों को पूरा करने का दायित्व आपके कंधों पर है। अगर आप इस भार को उठाने की प्रतीज्ञा करते हैं तो मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं।
वचन:
स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या॥
अर्थ- कन्या वर से कहती है कि वो कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय अगर आप मेरी भी सलाह लेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आती हूं।
सातवां वचन:
परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या॥
अर्थ- अंतिम वचन में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को नहीं आने देंगे तो यदि मैं आपके वामांग में आने के लिए तैयार हूं।