Govatsa Dwadashi: गोवत्स द्वादशी पर गाय माता की पूजा करते समय, वास्तु के इन नियमों का रखें ध्यान
punjabkesari.in Monday, Oct 13, 2025 - 09:44 AM (IST)

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Govatsa Dwadashi 2025: गोवत्स द्वादशी 2025 पर वास्तु और शास्त्रों के अनुसार पूजा करने से घर में लक्ष्मी, शांति और धन का स्थायी वास होता है। गौमाता की सेवा केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि वास्तु संतुलन और ऊर्जा शुद्धि का साधन है। गोवत्स द्वादशी, जिसे वसु बारस भी कहा जाता है, दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है। यह दिन गाय और बछड़े (वत्स) की पूजा के लिए समर्पित होता है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, गाय माता में समस्त देवताओं का वास होता है विशेषकर लक्ष्मी और विष्णु का। इस दिन गाय की आराधना से परिवार में संपन्नता, स्वास्थ्य और सौभाग्य बढ़ता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार गाय पूजा के नियम
पूजन की दिशा
वास्तु शास्त्र कहता है कि गाय माता की पूजा सदैव पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके करनी चाहिए।
यह दिशाएं सूर्य और कुबेर की हैं। जिससे घर में धन, तेज और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
पूजा स्थल का चयन
पूजा स्थान घर के आंगन या गौशाला के साफ क्षेत्र में होना चाहिए।
वास्तु के अनुसार, उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) भाग में पूजा करने से देवी-देवताओं की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
गौमाता की प्रतिमा या सजीव पूजा
यदि सजीव गाय उपलब्ध न हो, तो मिट्टी या धातु की प्रतिमा से पूजा की जा सकती है।
पूजा से पहले गाय को हल्दी, जल, और दूर्वा घास अर्पित करना शुभ माना गया है।
वास्तु के अनुसार, गाय की प्रतिमा दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) दिशा में नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि यह ऋण और बाधा बढ़ाती है।
दीपक और कलश की व्यवस्था
दीपक सदैव पूर्व दिशा की ओर जलाना चाहिए।
गाय पूजा में तांबे या पीतल के कलश का उपयोग अत्यंत शुभ माना गया है, जिससे घर की ऊर्जा शुद्ध होती है।
गाय माता को अर्पण और आशीर्वाद
गाय को गुड़, चारा और हल्दी मिश्रित जल अर्पित करें।
पूजन के बाद गौमाता की परिक्रमा तीन बार करें और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
यह कर्म वास्तु के अनुसार संपूर्ण दोषों को शांत करता है और गृह में स्थायी सुख-समृद्धि लाता है।