Gita Jayanti & Mokshada Ekadashi 2025: परिवार को दैवी सुरक्षा प्रदान करती है ये पूजा और जीवन के कठिन दौर में देती है मार्गदर्शन
punjabkesari.in Wednesday, Nov 26, 2025 - 07:07 AM (IST)
Gita Jayanti & Mokshada Ekadashi 2025: मोक्षदा एकादशी 2025 इस वर्ष अत्यंत शुभ संयोग लेकर आ रही है क्योंकि इसी दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। शास्त्रों में यह तिथि वह दिव्य समय माना गया है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। इस दिन किया गया व्रत, जप, दान और पूजा मनुष्य को पाप से मुक्ति, दरिद्रता से छुटकारा और जीवन में दिव्य प्रकाश प्रदान करता है। पौराणिक मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी के व्रत से व्यक्ति के सात जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और पूर्वजों को भी उत्तम लोक प्राप्त होता है।

इस दिन भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण और गीता मां की संयुक्त पूजा अत्यंत शीघ्र फलदायी मानी जाती है। जो साधक इस दिन नियमपूर्वक व्रत, मंत्र-जप और गीता-पाठ करते हैं, उनके घर में लक्ष्मी का स्थायी वास, कार्यों में सफलता और जीवन में सौभाग्य का प्रवाह बढ़ता है।
मोक्षदा एकादशी पर पूजा की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में स्नान, स्वच्छ वस्त्र धारण और ईशान कोण में शांत वातावरण बनाकर करनी चाहिए। भगवान विष्णु को पंचामृत स्नान, चंदन, अक्षत, पीले पुष्प और तुलसी दल अर्पित करने से ग्रह दोष शांत होते हैं। विशेषकर आज के दिन गीता-पाठ, मोक्ष, धन, स्वास्थ्य व दांपत्य से जुड़े मंत्रों का जाप करना चाहिए। भगवान विष्णु को तुलसी अर्पण करनी चाहिए। ईशान कोण में दीपदान करें।
इस तिथि का एक महत्वपूर्ण रहस्य यह भी है कि मोक्षदा एकादशी के दोपहर और संध्या के समय किया गया मंत्र-जप अन्य दिनों की तुलना में कई गुना अधिक फल देता है। शाम को ईशान कोण में दीप जलाना भाग्य क्षेत्र को सक्रिय करता है और घर से रोग, क्लेश और दरिद्रता दूर करता है।
मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती का यह दुर्लभ संगम आध्यात्मिक उन्नति, जीवन-शुद्धि और पुण्यलाभ का अद्भुत अवसर है। इस दिन किया गया व्रत व पूजा आपके परिवार को दैवी सुरक्षा प्रदान करती है और जीवन के कठिन दौर में मार्गदर्शन देती है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—
“धर्म, सत्य, भक्ति और कर्म ये चार ही मोक्ष का द्वार खोलते हैं।”
इस विशेष तिथि पर शास्त्र अनुसार नियमपूर्वक पूजा करने से—
मन पवित्र होता है।
घर में स्थायी समृद्धि आती है।
रिश्तों में प्रेम व सामंजस्य बढ़ता है।
कर्म-बाधाएं दूर होती हैं और साधक को दिव्य शांति प्राप्त होती है।
यह दिन केवल व्रत नहीं, बल्कि आत्मा को प्रकाश की ओर ले जाने वाला आध्यात्मिक पर्व है।

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