Gita Jayanti: गीता जयंती के अवसर पर Follow करें गीता की मुख्य शिक्षाएं

punjabkesari.in Wednesday, Dec 11, 2024 - 07:18 AM (IST)

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Gita Jayanti 2024: गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई दिव्य उपदेशों की याद में मनाया जाता है, जो कि महाभारत के भीष्म पर्व में वर्णित हैं। गीता जयंती के अवसर पर हम भगवद गीता की मुख्य शिक्षाओं को पुनः स्मरण करते हैं, जो जीवन के मार्ग को सही दिशा में निर्देशित करती हैं। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को कई महत्वपूर्ण उपदेश दिए, जो न केवल अर्जुन के जीवन के लिए, बल्कि पूरे मानवता के लिए मार्गदर्शक हैं। यहां गीता की कुछ प्रमुख शिक्षाएं दी गई हैं:

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कर्मयोग (Action without Attachment): गीता का सबसे बड़ा संदेश यह है कि हमें अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करते हुए बिना किसी फल की आशा किए निष्कलंक भाव से करना चाहिए। कर्म ही धर्म है और कर्म में आसक्ति या स्वार्थ नहीं होना चाहिए।
"तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं।" (2.47)

भक्तियोग (Path of Devotion): गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भक्ति के मार्ग को भी अत्यंत महत्वपूर्ण बताया है। भगवान से अटूट प्रेम और विश्वास रखने से आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।

"जो लोग मुझे भक्ति से पूजते हैं, मैं उन्हें अभय और अज्ञान से मोक्ष प्रदान करता हूं।" (9.22)

ज्ञानयोग (Path of Knowledge): गीता में ज्ञान के माध्यम से आत्मा की वास्तविकता को पहचानने का उपदेश दिया गया है। आत्मज्ञान से ही अज्ञान की घनघोर अंधकार को मिटाया जा सकता है।

"जो आत्मा न जन्मती है, न मरती है, वह अविनाशी है।" (2.20)

स्वधर्म का पालन (Follow Your Dharma): गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि उसे अपने धर्म का पालन करना चाहिए, भले ही वह युद्ध जैसा कठिन कार्य हो। जीवन में हमें अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से करना चाहिए।

"स्वधर्मे निधनं श्रेयं परधर्मो भयावहः।" (3.35)


साकार और निराकार ब्रह्म का भेद: गीता में श्री कृष्ण ने यह भी बताया कि ईश्वर के दो रूप हैं – साकार और निराकार। दोनों रूपों में वही परमात्मा निवास करते हैं और प्रत्येक रूप में श्रद्धा और भक्ति का समान महत्व है।

"मैं साकार रूप में तो व्यक्त हूं ही, साथ ही निराकार रूप में भी उपस्थित हूं।" (9.4)

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समत्व और संतुलन (Equanimity): गीता में संतुलन की अत्यधिक महत्वता है। हमें सुख और दुःख, लाभ और हानि, मान और अपमान में समान दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

"जो मनुष्य सुख-दुःख में समान रहता है, वह योगी कहलाता है।" (2.14)

ईश्वर पर विश्वास और समर्पण (Trust and Surrender to God): श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि जब कोई व्यक्ति पूरे दिल से भगवान के चरणों में समर्पण कर देता है, तो भगवान उसकी रक्षा करते हैं।

"जो मेरी शरण में आता है, मैं उसे कभी नहीं त्यागता।" (18.66)

योग का महत्व (Importance of Yoga): गीता में योग को मानसिक और शारीरिक शांति के साधन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि योग से ही आत्मा की वास्तविकता को समझा जा सकता है और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

"योगः कर्मसु कौशलम्।" (2.50)

गीता जयंती के अवसर पर इन शिक्षाओं का पालन करना हमारे जीवन को उच्चतम स्तर तक उठाने में मदद करता है। गीता का संदेश यह है कि जीवन के हर पहलू में सही दृष्टिकोण और सही कर्म से हम सुख, शांति और आत्मा की उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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