Ganesh Chaturthi Ganesh Visarjan: गणेश चतुर्थी और विसर्जन से जुड़ी हैं ये कथाएं, आप भी करें इनका रसपान
punjabkesari.in Wednesday, Aug 27, 2025 - 06:50 AM (IST)

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Ganesh chaturthi katha: धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, श्री वेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी, जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था। 10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोलीं तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत बढ़ गया है। वेद व्यास जी ने गणेश जी को तुरंत निकट के सरोवर में ले जाकर ठंडे पानी से स्नान कराया था इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है।
इसी कथा में यह भी वर्णित है कि श्री गणपति जी के शरीर का तापमान न बढ़े, इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया। यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई। माटी झरने भी लगी। तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा। इस बीच वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए, तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा की स्थापना व विसर्जन किया जाता है और 10 दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है।
Ganesh Jayanti katha: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती जब भगवान शंकर जी के साथ उत्सव क्रीड़ा कर रही थी तो उन पर थोड़ा मैल लग गया। जब उन्हें इसकी अनुभूती हुई तो उन्होंने शरीर से उस मैल को उतार दिया और उस मैल से उन्होंने एक बालक का शरीर बना दिया। फिर उन्होंने अपनी योग शक्ति से उस मैल से बने शरीर में प्राण डाल दिये। फिर उस बालक को आदेश देकर स्नान करने चली गयी। इस दौरान भगवान शिव का वहां पर आगमन हुआ और गणेश जी ने माता की आज्ञा को मानते हुए उन्हें भवन में प्रवेश करने से मना कर दिया। तब भगवान शंकर जी ने क्रोध में आकर अपनी त्रिशूल से गणेश जी का मस्तक काट दिया। यह देखकर माता पार्वती ने उन्हें अवगत कराया कि- यह बालक आप ही का पुत्र है। तब शिव जी ने अपने गणों को आज्ञा दी कि वे कोई भी मस्तक लें आयें जो कि उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके सो रहा हो। तब वह सहायक गण एक हाथी के बच्चे का सिर ले आये। जिसे शिव जी ने उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। तब सभी ने उन्हें बहुत से आर्शीवाद दिये एवं किसी भी देव आराधना, पूजा, हवन इत्यादि में सबसे पहले पूजे जाने का वरदान भी दिया और इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ।
Ganesh chaturthi story: पौराणिक कथा के अनुसार कहते हैं कि एक दिन चन्द्रमा को अपने सौंदर्य का अभिमान हो गया और उन्होंने गणेश जी के स्वरूप के कारण गणेश जी का उपहास कर दिया। अपने तिरस्कार पर गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि आज से तुम काले-कलंक से युक्त हो हो जाओ तथा जो भी आज के दिन तुम्हारा मुख देखेगा वह भी कलंक का पात्र होगा। उस दिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि थी। चन्द्रमा के क्षमा-याचना करने पर गणपती जी ने कहा- भविष्य में तुम सूर्य से प्रकाश पाकर महीने में एक दिन पूर्णता को प्राप्त करोगे। मेरा श्राप केवल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को विशेष प्रभावी रहेगा, बाकी चतुर्थियों पर इतना प्रभावी नहीं होगा। इस दिन जो मेरा पूजन करेगा उसका मिथ्या कलंक मिट जायेगा। चतुर्थी तिथि के स्वामी गणपति हैं। उपरोक्त प्रसंग से लेकर आज तक अनेक लोगों ने गणपतिजी के उस श्राप के प्रभाव का अनुभव किया तथा निरंतर अनुसंधानगत प्रमाणों के कारण आम जनमानस ने भी इसे स्वीकार किया।
Ganesh Chaturthi Chand Story: चतुर्थी को चन्द्र दर्शन के निषेध का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी एक ऐसी त्रिभुज कक्षा में रहते हैं। जिससे प्राणशक्ति की विषमता रहती है अपितु उसमें मारक किरणों की भी सत्ता है। पृथ्वी की ओर सूर्य की सदैव एक ही दिशा नहीं रहती, पृथ्वी के भ्रमण के कारण वह प्रतिक्षण बदलता रहती है। यह दशा चन्द्र पिंड की भी है। सब चतुर्थीयों को और खासकर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को अपनी चौथी कला दर्शाने वाला चन्द्रमा सूर्य की मृत्यु-किरण वाले भाग से प्रकाशित होता है। हमारा मन चन्द्र से अनुप्राणित (प्रेरित) है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने से हमारा मन भी चन्द्रमा की विकृत तरंगों से तरंगित होगा व अशुभ फल प्राप्ति का निमित्त बनेगा। अतः इस दिन चन्द्र-दर्शन निषिद्ध है।
Ganesh Visarjan Story: मान्यता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, उसे वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। गणपति स्थापना के बाद से 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है।
Ganpati Bappa Moriya: गणपति बप्पा से जुड़े मोरिया नाम के पीछे गणपति जी का मयूरेश्वर स्वरूप माना जाता है। गणेश-पुराण के अनुसार, सिंधु नामक दानव के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया। सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर को वाहन चुना और छह भुजाओं का अवतार धारण किया। इस अवतार की पूजा भक्त ‘गणपति बप्पा मोरया’ के जयकारे के साथ करते हैं।