गांधी जी इन मंत्रों और भजनों से करते थे प्रार्थना

punjabkesari.in Sunday, Nov 21, 2021 - 01:30 PM (IST)

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Mahatma Gandhi: गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में एक नए जीवन की शुरूआत की थी। तब वहां शाम की ही प्रार्थना होती थी। उस समय वहां जो भजन गाए जाते थे उसका एक संग्रह ‘नीतिनों काव्यों’ के नाम से प्रकाशित किया गया है। आज हम जिस आश्रम भजनावलि को देखते हैं उसमें 1914 से लेकर लगभग 1942 तक अनेक मंत्रों और भजनों का समावेश किया गया।

PunjabKesari Gandhiji used to pray to these mantras and hymns

अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में ठीक तरह से सब जम जाने के बाद बापू ने सुबह की प्रार्थना में से कुछ श्लोक कम करके उसे एक निश्चित स्वरूप दिया। प्रात: स्मरण के तीन श्लोक रखे। धीरे-धीरे आश्रम के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होने लगी। उन्हीं के साथ अनेक संत-कवियों की वाणी, भजन, रामधुन आदि का समावेश आश्रम की प्रार्थना में होने लगा।

दक्षिण अफ्रीका के दिनों से ही गांधी जी का नियम था जिस तरह आहार में हर एक को उसके अनुकूल खुराक दी जानी चाहिए उसी तरह प्रार्थना में भी सभी को उनकी रुचि और श्रद्धा का आध्यात्मिक आहार मिलना चाहिए। जब आश्रम में एक तमिल भाई ने अपने बच्चों को गांधी जी को सुपुर्द किया, तब गांधी जी ने प्रार्थना में तमिल भजन शामिल किए।

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आश्रम में गीता पाठ तो पहले से ही होता था, लेकिन वह उच्चारण मात्र तक सीमित था। गांधी जी चाहते थे कि गीता के उपदेशों का परिचय बचपन से ही हो जाए। इस तरह शाम की प्रार्थना में गीता के श्लोक कों का समावेश हुआ। विनोबा जी की गीता पाठ में बड़ी रुचि थी। रोज एक अध्याय का पढऩे का क्रम काफी समय तक चला। बाद में एक सप्ताह में पूरा गीता पाठ करने का कार्यक्रम प्रचलित हुआ।

बापू की प्रार्थना सभा में जरूरत के मुताबिक परिवर्तन होते रहे। मोटे तौर पर जो आश्रम भजनावलि बनी, वह नवजीवन ट्रस्ट ने 38 बार प्रकाशित की है। आश्रम भजनावलि में विभिन्न भजनों के राग और उनके गाने का समय, गीता, पांडव गीता, मुकंद माला के चुने हुए श्लोक और राम चरित मानस के कुछ अंश प्रकाशित हैं। बापू की प्रार्थना मंत्रोपनिषद ईशावास्य में से लिए गए पहले मंत्र से शुरू होती है :

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हरि:ॐ
ईशावास्यम इदम् सर्वम्।
यत् किं च जगत्यां जगत
तेन त्यक्तेन् भुंजीथा
मा गृध: कस्यास्विद् धनम्।।


आश्रम के एकादश व्रतों का श्लोक श्री विनोबा ने बनाया था। गांधी जी जब वर्धा में रहने लगे तब एक जापानी बौद्ध साधु प्रार्थना के पहले अपने कुछ मंत्र बोलते थे और चमड़े का एक वाद्य बजाते थे। युद्ध शुरू होने पर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। बापू ने उनकी स्मृति में बौद्ध मंत्र प्रार्थना में शामिल किया।

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श्री अब्बास तैयब जी की बेटी रेहाना बहन के आश्रम में आने से कुरान भी प्रार्थना में पढ़ी जाने लगी। कुरान के जो हिस्से प्रार्थना में शामिल हैं, उन्हें कुरान का दिल माना जाता है।

इसाई भजनों का समावेश दक्षिण अफ्रीका के जमाने से था। 1942 में गांधी जी जब पूना के आगा खान महल में गिरफ्तारी के बाद रहे, तब जरथुष्ट्री वाचन प्रार्थना में शामिल हुआ।

वैष्णवजन तो तेने कहिए, वृक्षन से मत ले लीड काइंडिली लाइट, तू दयालु दीन हो तू दानी हो भिखारी, जाके प्रिय न राम वैदेहि, अब लौ नासनि अब न नसैहों, श्री राम चंद्र कृपालुु भजमन, ठाकुर तुम शरणाई आया भजन गांधी जी को बहुत प्रिय थे। प्रार्थना के अंत में धुनें गाई जाती थीं, जिनमें रघुपति राघव राजा राम और श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवा लोकप्रिय थीं।

भजनावलि के विकास में सभी कुछ सहजता से शामिल किया गया। आश्रम का जीवन जैसे-जैसे समृद्ध होता गया वैसे-वैसे यह भजन संग्रह भी बढ़ता गया। आश्रम में होने वाली प्रार्थना सर्व-धर्म-सम-भाव के सिद्धांत पर आधारित थी। आज भी आश्रम संस्कृति से जुड़े अनेक परिवारों में शाम की प्रार्थना का चलन है।  


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Content Writer

Niyati Bhandari

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